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पास आकर भी बातें अब होती कहां

-कमल सिंह, हल्द्वानी अल्फाजों में बातें तुम करती कहां, इशारों की भाषा मुझको आती कहां। निहार लेता हूं तुमको अब यूं ही दूर से पास आकर भी बातें अब होती कहां। सपनों में तो खरीद लाया था सेहरा भी मैं,…

गौरैया

-डॉ. आभा सिंह भैसोड़ा, हल्द्वानी, नैनीताल ओ गौरैया! सोन चिरैया, क्यों अब तुम ना दिखती हो? मेरे घर की रौनक थी तुम, क्यों देहरी पार ना करती हो? शुभ संकेत, जो साथ तुम्हारे, आने से रह जाते हैं। मुनिया गौरैया…

आँसु, तूने दिये, मैं दुआ देता हूँ

-हिमांशु पाठक, हल्द्वानी उत्तराखंड आँसु, तूने दिये, मैं दुआ देता हूँ, खुश रहें तू सदा, ये दुआ देता हूँ ।। आँखों से, तेरे आँसु कभी ना बहे; तू! जहाँ भी रहे, बस सदा खुश रहें, मैं यही प्रार्थना, ईश से…

उसने कैसे पाले बच्चे

-बीना फूलेरा, हल्द्वानी उसने कैसे पाले बच्चे ये मत पूछो उससे वो रो पड़ेगी फ़ूटकर खिड़की के दरवाजे से बाधे गए उस बच्चें के पैर बता देगी साड़ी में पड़ी गाठें वो बंद दरवाजे गवाही दे देंगे जिन्हें पीटा गया…

गणतंत्रता

-कोमल भट्ट महज़ किरदार ही क्यों.., खुद में एक कहानी बनो हिंदू–मुस्लिम तो ठीक है, पर पहले एक हिंदुस्तानी बनो!! स्वतंत्रता के बाद भी ये सिलसिला न खत्म हुआ, लड़ते रहे आपस में और दी देश को ब-दुआ | आज़ादी…

सर्दी का मौसम

-प्रियदर्शनी खोलिया, हल्द्वानी सर्दी का है मौसम आया, आसमान में कोहरा छाया। कहीं पड़ेंगे ओले, तो कहीं पड़ेगी बरफ, पर यह ठंड तो छा गई हर तरफ। सब के गर्म कपड़े जैसे स्वेटर और जैकेट निकल जाते हैं, बाजारों में…

हाए कलियुग!

- हंसिका रौतेला सामने पहाड़ खड़ा है? काट दो इसे। यहां नदी बहती है? इस पर हम बांध बनाएंगे। यह जो घना जंगल है, कितना पुरातन! हम आधुनिकता के पुजारी हैं, हम यहां सड़कें बनाएंगे। जानवर था, मार दिया। जानवर…

मृत्यु को मैं जी रही

-डॉ. शबाना अंसारी विरह में प्रियतम के संसार ही सुनसान है घुट घुट के जी रही विष ये भी पी रही तुम बिन मेरे प्रियतम मृत्यु को मैं जी रही सात वचनो में बंधी देह को तेरी किया धूल चरनो…
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