April 06, 2023 0Comment

पास आकर भी बातें अब होती कहां

-कमल सिंह, हल्द्वानी
अल्फाजों में बातें तुम करती कहां,
इशारों की भाषा मुझको आती कहां।
निहार लेता हूं तुमको अब यूं ही दूर से
पास आकर भी बातें अब होती कहां।

सपनों में तो खरीद लाया था सेहरा भी मैं,
मगर सपने मुक्ममल हो जाएं ऐसा होता कहां।
उसके पापा को तो चाहिए था सरकारी दामाद
मगर पढ़कर भी सरकारी दफ्तां अब मिलता कहां।

लिख लेता हूं खत कभी उसको छुपके से,
तो कभी इन्स्टा में उसकी डीपी देख लेता हूं।
बहल जाता है मेरा दिल अब इन्हीं कामों में
ख्यालों में भी वो आ जाए अब ऐसा होता कहां।

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gtripathi

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