June 24, 2022 0Comment

नियति और जिंदगी

-आशा बाजपेयी ‘संभवी’

अचानक आज सुमन को अपने घर में देख कर मन बहुत प्रसन्न हो उठा, वह पहले वाली चुलबुली बिंदास सुमन फिर से लौट आई थी उसके चेहरे पर छाई खुशी देखकर मन गदगद हो गया ,वह मिलते ही गले लग गई l
बोली -“बिमला कैसी है?” “आंटी से पता चला कि तुम आई हो।”
मैं ठीक हूँ , तुम कैसी हो?
और हमारे बीच बातों का लम्बा सिलसिला शुरू हुआl , होता भी क्यो नl क्योंकि हम दोनों बचपन की सहेलियाँ जो है।और यह एक संयोग ही था कि हम दोनों अपने -अपने मायके आए थे इस तरह हम दोनों एक लम्बे अरसे के बाद मिल पाए थे। सुमन के जाने के बाद पुरानी यादें ताजा हो गईंl
हंसती मुस्कुराती वह किस प्रकार मजबूर होकर नियति के सामने घुटने टेकती नजर आई थीं?
“पापा अभी पढ़ने दो , माँ आप रोको, विमला दोस्ती का फर्ज
निभा दे बहन, कोई तो कुछ करो।”
लेकिन बड़ों के आगे सबके सब नतमस्तक l इसे कहते हैं नियति l इसे कौन रोक सकता है,? होनी तो होकर रहती है।
हुआ कुछ यूँ था कि उसकी दादी माँ कुछ बीमार रहने लगीं थीं और उनकी जिद थी कि वह अपनी इकलौती पोती की शादी अपनी आँखो से देखेंl बार-बार यही बातें घर में होती थीl
पापा कभी चुप रहते कभी कहते कि-” मुझे अभी बेटी को पढ़ाने दो अभी तो वह बच्ची है शादी, शादी तो बिल्कुल अभी नही करूँगा। चाहे जो भी हो ।
अंकल पापा के पास आते और अपनी दुविधा बताते “कहते माँ की बात टाल देता हूँ जो होगा देखा जाएगा।” लेकिन वह ऐसा कर नहीं पाए।”
वह चाहकर भी अपनी होनहार लाडली बेटी की इच्छा पूरी न कर पाए । क्योंकि वह अपनी माँ का बहुत आदर करते थे चाहकर भी वह उनका विरोध कर न पाए।
दुविधा में पड़ कर वह माँ को मना ती करते शादी की बात बार-बार टालते माँ से कहते-” मैं ऐसा काम कैसे करूँ समय से पहले ही शादी, माँ मुश्किल है ।”
अचानक सुमन की दादी माँ का स्वास्थ्य फिर गंभीर हुआ और फिर क्या था ? कहानी तो कुछ और ही बुन गई।
अचानक मुझे एकदिन पता चला कि सुमन की शादी अगले महीने होने वाली है । बहुत उधेड़बुन के बाद आखिर सुमन की शादी तय कर दी गई । वह किसी तरह इस सबके लिए तैयार न थी।
लेकिन मजबूरी में क्या करती? क्योंकि जब मैं उससे मिलने गई तो उसने ही मुझसे कहा -“क्या सोचती थी और मेरे साथ यह सब क्या हो रहा है?”
फिर गले लगकर खूब रोई थी। मैं भी मूक दर्शक बनकर,
बेबस हो कुछ कर न पाई । वास्तव में सच तो यह था कि नियति उसके साथ जो खेल रही थी उससे उसका बुरा ही होने वाला था और कुछ नहीं । उसकी खामोश आँखे रह- रह कर सभी से एक प्रश्न करती, साथ ही अपने प्रश्नो – का जवाब माँगती।
मैं कहती भी तो क्या ? बस एक दूसरे को निहारते रहे , कभी गले मिलते , कभी बस ईश्वर को याद करके चुप हो जाते l
मै यही कहती-” कि ऊपर वाला सब ठीक करेगा, सुमन कुछ फैसले हमारी मर्जी से नहीं होते ऊपर वाले पर छोड़कर वर्तमान को अपना ले मेरी बहन l”
जिस पर बीतती है यह वही जानता है। लेकिन क्या करें?
सुमन अपने परिवार की बेटी दो भाइयों की अकेली बहन पिता अधिकारी थे l संपन्न परिवार की दुलारी बेटी थी । वह हर कोई उसके नखरे उठाता था । वह पढ़ने में बहुत तेज थी, उसे पढ़- लिखकर कुछ बनने का शौक था । सुमन के पिता भी यही चाहते थे कि उनकी बेटी पढ़ -लिखकर कुछ बन जाए तो उन्हें बहुत खुशी मिलेगी उनको लगेगा कि शायद उन्होंने उसकी परवरिश में कोई कमी नहीं रखी वह अपना कर्तव्य पूरा कर पाए। लेकिन जिंदगी को कुछ और ही मंजूर था सुमन की दादी की गड़बड़ तबीयत और उनकी जिद ने सुमन की जिंदगी में तूफान खड़ा कर दिया।
उसके पिता अक्सर मेरे पिता से कहते पाए जाते थे ……”कि हम दोनों मिलकर अपनी बेटियों को को पढ़ाएंगे खूब खुशियां देंगे”
मेरे पिताजी कहते हैं- हाँ क्यों नहीं क्योंकि हमारी बच्चियाँ पढ़ने में बहुत अच्छी हैं ।”
लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था अपनी माँ की बात उसके पापा टाल नहीं पाए l
अक्सर अपनी पत्नी से कहते- “मैं बहुत परेशान हूँ। क्या करूँ ? माँ की बात मानूँ या न मानूँ कुछ समझ में नहीं आता । ”
“आंटी बस उत्तर में मौन रह जाती ।” ” बार-बार कहने पर कहती-” मैं आपको क्या बताऊँ, इन बातों का मैं क्या जवाब दूँ । क्योंकि वह खुद दुविधा में थी यह बात कैसे कहती कि वह अपनी माँ की बात न माने।”
फिर एक दिन पता चला सुमन की शादी तय हो गई है ।मैं यह सुनकर हैरान रह गई बड़े-बड़े सपने देखने वाली सुमन के साथ यह क्या होने जा रहा था सुमन से मिलने में जा पहुंची यह सब क्या है? क्या सच है ?
ऐसे ही पूछ लिया-” कि जो मैं सुन रही हूं सुमन क्या सच है?”
वह क्या उत्तर देती ?वह कहती क्या उत्तर दूँ? जब पापा दादी के सामने कुछ कह न पाए तो भला मै क्या कहूँ ।”
और फिर वह गले लग कर फफक -फफक कर रो पड़ी कब दो-तीन घंटे बीत गए पता ही नहीं । सबने नियति को स्वीकार कर लिया था। शादी का दिन आ ही गया शादी की धूमधाम में पूरा परिवार उनका खुश था उसके पापा अपनी बिटिया की शादी में सारे अरमान पूरे करना चाहते थे वह अपनी बेटी के लिए कोई कमी नहीं रखना चाहते थे इसलिए तन – मन से वह ही नहीं पूरा परिवार भी उसकी शादी की तैयारियों में जुटे गए थे ।
यह क्या दरवाजे पर बरात आते ही सभी को नशे में झूमता देख अश्लील हरकतें करता देख वहाँ पर उपस्थित सभी लोग
हैरान कैसा दवारचार ? गुस्से पर काबू रखा गया लेकिन फिर भी सबके सब भड़क उठे ।क्या भाई ,क्या रिश्तेदार, क्या बंधु, क्या जान- पहचान वाले ,किसी को यह बात गवारा नहीं हो रही थी । साथ ही साथ सब के सब सदमे में आ गए थे । किस भूल की सजा है यह ? हमारे दरवाजे पर ही यह सब क्यों हो रहा है ? अपनी प्यारी बच्ची को इन लोगों के हवाले कैसे करें ? सब बहुत परेशान भविष्य में होने वाली अनहोनी की बारे में सोचकर , पापा,चाचा, ताऊ घर के बुजुर्गों ने यह निश्चय किया गया कि बारात को वापस भेज दिया जाए । अंकल अपनी बेटी को किसी शराबी को देना नहीं चाहते थे ।
इसलिए लड़के के पिता के बार -बार कहने पर भी-” कि परिवार हमारा खराब नहीं है ,सब लोग शराबी नहीं है, कुछ लोगों ने आकर हमारी बारात के माहौल को खराब कर दिया है ।”
लेकिन किसी ने उनकी एक न सुनी और सबने बुझे मन से डबडबाई आँखो से उन्होंने कहा कि..”आप अपनी बरात वापस ले जाएंl”
चारों ओर सन्नाटा छा गया सब लोग एक दूसरे का मुँह देख रहे थे कोई किसी से क्या कहता ? माँ लगातार रोए जा रही थी सब समझा रहे थे, लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था बार-बार कहती मेरे बेटी के साथ ही ऐसा क्यों हुआ ? मैंने क्या गुनाह किया है । उसके पिता चादर ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया । परिवार का माहौल गम में बदल गया दादी भी दुखी हो गई ।
जैसे तैसे समय बीतता गया । परिवार को ऊबरने में एक साल लग गया । दादी के हालात को देखकर शादी दोबारा तय की गई । कहानी फिर वही दोहरा गई इस बार सबने बहुत समझायाl सुमन ससुराल के लोग अच्छे होंगे सुब बुरे नहीं होते ,
बडों ने कहा -“इस बार आप सब शादी करोगे हालात से समझौता करो ,उसको समझो, भाई फिर भी नहीं चाहते थे कि वह विवाह हो उनके लाख विरोध करने पर भी उपस्थित लोगों ने सुमन के परिवार को बहुत समझाया ।”
क्योंकि एक बार ऐसी घटना पहले भी घट चुकी थी वे दोबारा वही घटना घटने नहीं देना चाहते थे इसलिए आखिरकार सुमन की शादी हो गई और वह अपने पी के नाम की महावर, सिंदूर, कंगना, सोलह श्रृंगार कर ससुराल चली आई । वहाँ उसका भव्य स्वागत हुआ । सबकी बातें सच हो गई सुमन को सब हाथों-हाथ लेते ,बहुत प्यार दुलार देते उसकी हर बात का ध्यान रखते । पति भी बहुत अच्छे थे । जब तक उसे घुमाने ले जाते और खूब मस्ती करते । जब हम दोनों सखियो मिलतीं तब है वह अपनी पति की प्यारी बातें बडे मजे से साँझा करती थी।
अपने पति की बातें करती,वह कहती-” जब वह साथ घुमाने ले जाते हैं तो मेरा हाथ अपने हाथों में डालकर घूमते हैं एक पल के लिए भी नहीं छोड़ते हैं ।”
वह बताती-” मन चाहता है कि जिंदगी बस घूमने में ही कट जाए, मन तो बस उनके पास ही रहने का करता है।” दूर होने का मन ही नही करता है।”
बहुत अच्छे से कट रही थी उसकी जिंदगी, कभी गलती करती
तो वह उस बात को बहुत अच्छे से संवार लेतेl
सुमन कहती -“कि मैं बहुत भाग्यशाली हूँ। जो मुझे ऐसा जीवन साथी मिलाl
क्या पति, क्या ससुराल वाले, वह सबके व्यवहार से खुश थी यही नहीं अपने मायके भी कम आने लगी थी । यही है एक लड़की का जीवन अगर ससुराल में प्यार दुलार मान- सम्मान मिले तो लड़की मायका भूलने लगती हैl
जब भी हम मिलते तो बस यही कहती-” विमला मैं चाहती हूँ हर जन्म में यही मेरे पति हो मौत भी आए तो इनकी बाहों में ।”
मैं भी बहुत खुश थी कि जो हुआ अच्छा हुआ आज सुमन खुश है। उसकी प्यार भरी बातें सुनकर मुझे लगता कि काश ! हर लड़की का भाग्य ऐसा ही हो । लेकिन हकीकत को तो कुछ और ही मंजूर था । शायद उसके जीवन में प्यार की
उमर ही कम थी। हँसते खेलते जिंदगी चल रही थी । माँ ने ही एक दिन बताया कि सुमन माँ बनने वाली है । उसका पूरा परिवार खुश था। अभी कुछ ही दिन बीते होगें इस बात को कि एक दिन माँ का फोन आया कि सुमन के पति नहीं रहे । सुनकर मैं सकते में आ गई । मुझे चारों ओर अंधेरा नजर आने लगा। कितनी बडी परीक्षा ले रहे हो प्रभु आप । इतना बडा दुख कैसे सहन करेगी?
मेरी हिम्मत उससे कुछ पूछने की नहीं हो रही थी। फिर भी कुछ दिन बाद मैं उससे मिलने गईl उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी। वह तो एक पत्थर की मूरत बन चुकी थी ।
लेकिन में खुद को रोक न पाई उसे गले लगाकर बोली-” जिससे तुम इतना प्यार करती हो उसकी निशानी है तुम्हारे पास, तुमको उसके लिए जीना है । तुम्हें मन पर पत्थर रखकर अपने प्यार के सपनों के लिए जीना है बहन ।”
परिवार वाले भी यही समझाते रहते थे। मैंने कहा-” अपने मोहित की निशानी के लिए सपनों के बजह के लिए हंसकर जीना होगा सुमन । तुझे अपने प्यार का वास्ता ।”
इतना कहकर में जब चलने लगी। “तो वह मुझे छोड़ नहीं रही थी,लेकिन वापिस आना भी तो था।”
यूँ ही कई महीने बीत गए । जिंदगी का नाम ही चलते रहना है। वह कभी किसी के लिए नहीं रुकती है। इस प्रकार नौकरी लगने पर सुमन अपने बेटे को लेकर अपने मायके आ गयी थी। क्योंकि उसकी नौकरी वहीं आस- पास लगी थी । और आज उसकी चंचलता और हिम्मत देखकर मैं बहुत खुश थी ।
प्यारी बहनों से मेरा यही निवेदन है कि सकारात्मक सोच से काम लें कभी भी हिम्मत न हारे ‘नियति’ अवश्य आपका पक्ष लेगी।

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