देवभूमि उत्तराखण्ड सदैव ही देवों की तपोभूमि रहा है , इस कारण यह अटूट एंव अगाध आस्था का केन्द्र भी रहा है | श्रावण मास व नवरात्रों में मंदिरों में चहल पहल एंव भीड़ बढ जाती है | रानीखेत के आसपास झूलादेवी, कालिका मंदिर , मनकामेश्वर मंदिर, पंचेश्वर मंदिर, शिव मंदिर आदि मंदिरों में भक्तों को भीड़ लगी रह रही है | नवरात्रों में इन मंदिरों में एक प्रमुख स्थान मां झूला देवी का है | मां झूलादेवी पर श्रद्धालुओं एंव भक्तों की अगाध अटूट आस्था है | रानीखेत नगर से चौबटिया मार्ग पर रानीखेत से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भव्य मां झूलादेवी का मंदिर | देवदार एंव बुरांश के वनों के मध्य में माता का मंदिर स्थित है | माना जाता है कि सच्चे मन से जो भी मां के दरबार में आता है , उसकी हर मुराद मां झूलादेवी पूरा करती है | झूलादेवी को मां सिंहसवारी , मां दुर्गा के रूप में पूजा जाता है | माना जाता है कि लगभग आठवीं सदी में यह स्थान सुनसान चरागाह था | इस मंदिर का निर्माण जंगली जानवरों से रक्षा के उद्देश्य को लेकर किया गया था | रानीखेत नगर से लगभग आठ किलोमीटर दूर शांत एंव एंकात रमणीक स्थल पर मां झूलादेवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह स्थान चौबटिया,पन्याली, पिलखोली, जैनोली, उपराड़ी, एंव आसपास के ग्रामीणों के जानवरों का चरागाह था, और आसपास का क्षेत्र घनघोर वनों से घिरा हुआ था | इस कारण खूखार वन्य जीव आए दिन ग्रामीणों के मवेशियों को शिकार बना लेते थे | इससे चरवाहे एंव आसपास के ग्रामीण अत्यधिक दुःखी हो गये थे | एक दिन रात्री में एक चरवाहे को मां शेरोवाली ने दर्शन दिये और कहा कि चारागाह के पास की जमीन में माता की एक मूर्ति दबी हुई है , उसे निकालकर तुम मेरा मंदिर बनाओ | चरवाहे ने सपने में माता के बताये के अनुसार ही चारागाह से मूर्ति निकालकर माता का मंदिर उस स्थान पर बना दिया | इसके बाद वन्य जीव ग्रामीणों के मवेशियों का शिकार नहीं करते थे | मां झूला देवी पर पर लोगों की अटूट आस्था का स्पष्ट अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां पर केवल नवरात्रों में ही नहीं अपितु पूरे वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, क्योंकि मां झूलादेवी सबकी मनोकामना पूरी करती है | मंदिर के चारों तरफ टंगी छोटी बड़ी सैकड़ो घंटियां भक्तों के अटूट अगाध आस्था के गवाह हैं | श्रावण मास में व चैत्र की नवरात्रों में श्रद्धाल सुबह से पूजा अर्चना के लिए मां झूलादेवी के दरबार में पहुंच जाते हैं | अष्टमी एंव नवमी को भक्तों , श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी रहती हैं | रमणीय एंव एकांत स्थल पर स्थित मां झूलादेवी के मंदिर में आने पर मन को एक शांति प्राप्ति होती है | मां झूलादेवी के मंदिर में मनोकामनाऐं पूरी होने पर श्रद्धालु घंटियां चढ़ाते है , मंदिर के चारों ओर लगे घंटियों से मां की कृपा का स्पष्ट अंदाजा लगाया जा सकता है | मां झूलादेवी का मंदिर वर्तमान में भव्य एंव आकर्षक है मंदिर के बाहर मां की सवारी सिंह (शेर ) की बड़ी प्रतिमा बनी हुई है , मंदिर के चारों ओर घंटियां सजी हुई हैं | देवदार , बुरांश के रमणीक वनों से घिरा मां झूला देवी श्रद्धालुओं की सच्चे मन से मांगी गयी हर मुराद पूरी करती है | मां झूलादेवी के मंदिर में आसपास के ग्रामीण ही नहीं अपितु दूर दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर माता के दरबार में पहुंचते हैं और मां झूलादेवी सबकी झोली भरकर मोकामना पूरी करती है | मां को नवरात्रो में नौ रूपों में पूजा जाता है , जिनमें ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्टमांडा , शैलपुत्री, कात्यायिनी, आदि रूपों में नवरात्रों पर मां की पूजा की जाती है | नवरात्र पर.
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः ||
का मंत्र जाप भी किया जाता है | मां झूलादेवी को सिंह सवारी , मां दुर्गा के रूप में आराधना की जाती है | सबकी मुराद मनोकामना मां झूलादेवी पूरा करती है |
भुवन बिष्ट “रानीखेत” (उत्तराखण्ड)