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गौरैया

-डॉ. आभा सिंह भैसोड़ा, हल्द्वानी, नैनीताल ओ गौरैया! सोन चिरैया, क्यों अब तुम ना दिखती हो? मेरे घर की रौनक थी तुम, क्यों देहरी पार ना करती हो? शुभ संकेत, जो साथ तुम्हारे, आने से रह जाते हैं। मुनिया गौरैया कब आयेगी? सूने घर दीवार भी पूछते हैं! कीट नाशक और टावर आतंक, हमारी राह […]

आँसु, तूने दिये, मैं दुआ देता हूँ

-हिमांशु पाठक, हल्द्वानी उत्तराखंड आँसु, तूने दिये, मैं दुआ देता हूँ, खुश रहें तू सदा, ये दुआ देता हूँ ।। आँखों से, तेरे आँसु कभी ना बहे; तू! जहाँ भी रहे, बस सदा खुश रहें, मैं यही प्रार्थना, ईश से करता हूँ।। तूने दर्द दियें, मैं दुआ देता हूँ, तेरे आँसु को में, मैं अपना […]

उसने कैसे पाले बच्चे

-बीना फूलेरा, हल्द्वानी उसने कैसे पाले बच्चे ये मत पूछो उससे वो रो पड़ेगी फ़ूटकर खिड़की के दरवाजे से बाधे गए उस बच्चें के पैर बता देगी साड़ी में पड़ी गाठें वो बंद दरवाजे गवाही दे देंगे जिन्हें पीटा गया नन्हें हाथों से दीवारों से पूछों सुनाई देंगी अनगिनत अनसुनी आवाजें जो लगाई उस बच्चें […]

डाॅ. आभा सिंह भैसोड़ा और प्रियदर्शिनी खोलिया बनीं साहित्यकार आॅफ द मंथ

हरफनमौला वेबसाइट की जनवरी माह की प्रतियोगिता में रहीं विजयी हल्द्वानी। हरफनमौला वेबसाइट की ओर से जनवरी में आयोजित मासिक काव्य प्रतियोगिता में डाॅ. आभा सिंह भैसोड़ा की कविता ‘मां’ और प्रियदर्शिनी खोलिया की कविता ‘सर्दी का मौसम’ को 500 से अधिक व्यूज मिले हैं। इस उपलक्ष्य में संस्था की ओर से उन्हें डिजिटल सर्टिफिकेट […]

गणतंत्रता

-कोमल भट्ट महज़ किरदार ही क्यों.., खुद में एक कहानी बनो हिंदू–मुस्लिम तो ठीक है, पर पहले एक हिंदुस्तानी बनो!! स्वतंत्रता के बाद भी ये सिलसिला न खत्म हुआ, लड़ते रहे आपस में और दी देश को ब-दुआ | आज़ादी के बाद फिर सोचा संविधान लाना होगा, हिंदू-मुस्लिमों को पहले हिंदुस्तानी बनाना होगा | तभी […]

सर्दी का मौसम

-प्रियदर्शनी खोलिया, हल्द्वानी सर्दी का है मौसम आया, आसमान में कोहरा छाया। कहीं पड़ेंगे ओले, तो कहीं पड़ेगी बरफ, पर यह ठंड तो छा गई हर तरफ। सब के गर्म कपड़े जैसे स्वेटर और जैकेट निकल जाते हैं, बाजारों में गुड़ मूंगफली और सेब केले ही आते हैं। बच्चों के स्कूल हो जाते हैं बंद, […]

हाए कलियुग!

– हंसिका रौतेला सामने पहाड़ खड़ा है? काट दो इसे। यहां नदी बहती है? इस पर हम बांध बनाएंगे। यह जो घना जंगल है, कितना पुरातन! हम आधुनिकता के पुजारी हैं, हम यहां सड़कें बनाएंगे। जानवर था, मार दिया। जानवर है, कम विकसित है। खतरनाक है! वह सही ग़लत की समझ नहीं रखता। एसलिए मार […]

मृत्यु को मैं जी रही

-डॉ. शबाना अंसारी विरह में प्रियतम के संसार ही सुनसान है घुट घुट के जी रही विष ये भी पी रही तुम बिन मेरे प्रियतम मृत्यु को मैं जी रही सात वचनो में बंधी देह को तेरी किया धूल चरनो की तेरी मांग में अपनी भरा इससे जियादा किया करूं ये वचन कम तो नहीं […]

मत विनाश के द्वार को खोलो

-डॉ. भगवती पनेरू, हल्द्वानी, नैनीताल कुछ तो सोचो !! कुछ तो समझो !! मनु की ऐ संततियो!! अब तो ——- ???? मानव – मन की आंखें खोलो !! ये ऋषियों, मुनियों की धरती मत खिलवाड़ करो इनसे तुम! ये देवों की तपोभूमि है, मत पिकनिक स्पॉट बनाओ ! मत काटो प्रहरी पर्वतों को, मत यहां […]

हाड़ कंपाती बर्फीली हवा

-पूरन भट्ट, हल्दूचौड़ दोस्तो, कहना न होगा कि धुंध से उपजी ठंड और सूर्य की रश्मियों में अपना वर्चस्व सिद्ध करने का जो प्राकृतिक ड्रामा चल रहा है उसने तो हमारा जीना मुहाल किया हुआ है ! हाड़ कंपाती बर्फीली हवा नाक और कान सुन्न करते हुए सीमा पर खड़े जवानों की याद ताज़ा कर […]