-कमल सिंह, हल्द्वानी अल्फाजों में बातें तुम करती कहां, इशारों की भाषा मुझको आती कहां। निहार लेता हूं तुमको अब यूं ही दूर से पास आकर भी बातें अब होती कहां। सपनों में तो खरीद लाया था सेहरा भी मैं, मगर सपने मुक्ममल हो जाएं ऐसा होता कहां। उसके पापा को तो चाहिए था सरकारी […]