-कमल सिंह, हल्द्वानी ग़ज़ल लिखूं या लिखूं कोई कविता कसम कहूं या कहूं उसे कोई दुविधा।। प्रेम है या है कोई बद्दुआओं का सितम हर मोड़ पे दिखती अब कोई नयी दुविधा।। ग़ज़ल लिखूं तो उसे समझाये कौन? शायरी लिखूं तो उसे बताये कौन? कभी लिख देता हूं एक छोटी सी कविता, मगर दिख जाती […]