अमृता पांडे, हल्द्वानी
नैनीताल, उत्तराखंड
आस्था का द्वार हरिद्वार इस वर्ष महाकुंभ का केंद्र है। 5 वर्ष पूर्व 2016 में भी यहां पर अर्ध कुंभ हुआ था। तब सब कुछ सामान्य था।जब इतना बड़ा आयोजन हो तो व्यवस्था में कहीं ना कहीं कोई कमी या कोई चूक हो जाती है यह बात असामान्य नहीं है परंतु इस बार परिस्थिति बिल्कुल ही भिन्न है। पूरे 1 साल से अधिक समय से कोरोनावायरस का संक्रमण फैला हुआ है। लाखों मौतें हो चुकी हैं। संक्रमित लोगों की संख्या भी काफी अधिक है। वैक्सीन लग तो रही है परंतु कितनी कारगर होगी यह भी वैज्ञानिक भी नहीं बता पा रहे हैं। आए दिन नए-नए स्ट्रेन आ रहे है। ऐसे हालात में यह अव्यवस्था किस ओर संकेत करती हैं….? कोई भी धार्मिक आयोजन लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ होता है। संत समाज हमारे देश में पूज्य हैं लेकिन ऐसे माहौल में कोविड नियमों का पालन न करना, मास्क ना लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान न रखना, यह सब कुछ किसी एक विभाग या कुछ विभागों की जिम्मेदारी तो नहीं होती। माना कि संबंधित विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूर्णता सक्षम नहीं हैं। कारण कुछ भी हो सकते हैं, साधनों का अभाव, मैन पावर की कमी लेकिन आम आदमी को भी तो इस संबंध में संवेदनशील होना चाहिए। संत समाज हमारा आदर्श है हमारे देश में आदर्शों के पद चिन्हों पर चलने की परिपाटी है अतः उन्हें भी व्यवस्था को बनाए रखने में अपना योगदान देना आवश्यक हो जाता है। दो शाही स्नानों के दौरान घाट भीड़ से पटे हुए थे और किसी भी तरह की सतर्कता नहीं बरती गई। यहां तक कि धार्मिक आयोजन से जुड़े लोग भी बिना मास्क के दिखाई दिए। क्या कोई भी आयोजन व्यक्ति के जीवन से महत्वपूर्ण हो सकता है….? माना हर संक्रमित की जान नहीं जा रही है, रिकवरी रेट भी सही है लेकिन वायरस ने शरीर के अंदर जो आक्रमण किया है, उसका दुष्प्रभाव तो कई रूपों में देखा जा रहा है और आजीवन व्यक्ति का पीछा नहीं छोड़ रहा है। बताया जा रहा है कि लोगों के फेफड़े, किडनी समेत विभिन्न शारीरिक हिस्सों में वायरस का प्रभाव पड़ रहा है। क्या ऐसे में सावधानी अपेक्षित नहीं है..? जीवन और स्वास्थ्य रहेगा तो सब कुछ रहेगा। पिछले एक साल में लाखों लोग बेरोज़गार हुए हैं, व्यापार प्रभावित हुए हैं, बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। हम लोगों को भी तो मिलजुल कर इस समस्या को समझना चाहिए। मेला क्षेत्र में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखकर पुलिस प्रशासन भी दिशा निर्देशों का पालन कराने में असमर्थ रहा। मुझे लगता है कि यह व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी भी है। हम अपने अधिकारों की बात अवश्य करें, उन्हें छीन कर भी लें परंतु कर्तव्य भी तो साथ साथ चलते हैं ना। सरकारी कर्मचारी और अधिकारी जो कुंभ मेले में सरकारी ड्यूटी पर वहां पर उपस्थित हैं, उनके भी संक्रमण होने का डर है और साथ में उनके परिवार वालों के लिए भी यह खतरा बना हुआ है। संक्रमित होने पर इन्हें सरकार की ओर से किसी तरह का संरक्षण या सुविधा भी प्राप्त नहीं है। संबंधित पक्ष को इस ओर खुली आंख से देखना चाहिए। दुष्कर समय में किसी भी आयोजन को सीमित रखकर महामारी को फैलने से रोका जा सकता है। क्योंकि महामारी यदि विकराल रूप ले लेगी तो इससे निपटने के साधन भी हमारे पास नहीं होंगे। वैसे भी पुरानी कहावत है “प्रिवेंशन इज़ बेटर दैन क्योर.”
नववर्ष की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। मां दुर्गा रोग- शोक, संताप का अंत करें और हम सभी के परिवार सुरक्षित रहें।
May 2, 2021
Very nice and logical article. Eye opener for those who believes in accepting the truth and cares for humanity for rest sab Ram bharose…