-किरन पंत’वर्तिका’, हल्द्वानी उत्तराखंड
निश्चय ही वन्दनीय है हिन्दी
प्राणों में बसी हर श्वास है हिन्दी
हिंदी भारत मां के माथे की बिंदी
बड़ी सरल, सौम्य, सुंदर है हिन्दी।
रमैनी,सबद, साखी, रहीम रत्नावली है हिन्दी महादेवी की यामा दिनकर की कुरुक्षेत्र है हिन्दी
हिंदी भारत मां के माथे की बिंदी
हर कवि लेखक की पुकार है हिन्दी।
शिकागों में विवेकानंद की गूंज हिंदी
मानवता की जीत भाव की गरिमा है हिन्दी
हिंदी भारत मां के माथे की बिंदी
एकता की अनुपम धारा है हिन्दी।
सात सुरों की झंकार है हिन्दी
तानसेन की फनकार है हिन्दी
हिंदी भारत मां के माथे की बिंदी
गौरवशाली विश्व गुरु बनी हैं हिन्दी।