July 10, 2022 4Comments

ग़ज़ल लिखूं या लिखूं कोई कविता

-कमल सिंह, हल्द्वानी

ग़ज़ल लिखूं या लिखूं कोई कविता
कसम कहूं या कहूं उसे कोई दुविधा।।
प्रेम है या है कोई बद्दुआओं का सितम
हर मोड़ पे दिखती अब कोई नयी दुविधा।।
ग़ज़ल लिखूं तो उसे समझाये कौन?
शायरी लिखूं तो उसे बताये कौन?
कभी लिख देता हूं एक छोटी सी कविता,
मगर दिख जाती है उसमें भी उसे कोई दुविधा।
अगर लिख दूं कविता में उसे मैं चांदनी
तो दो दिन तक मुझसे कोई बात नहीं।
अगर समझाऊं उसे कि कविता क्या है
तो पूछने लगती है उससे क्या रिश्ता है।।

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gtripathi

4 comments

  1. बहुत सुंदर । शब्दों का सही प्रयोग करे है ।।

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    1. Very nice

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    2. Bahut sunder kamal

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    3. Good bhai acchi kahani h

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