-कमल सिंह, हल्द्वानी
ग़ज़ल लिखूं या लिखूं कोई कविता
कसम कहूं या कहूं उसे कोई दुविधा।।
प्रेम है या है कोई बद्दुआओं का सितम
हर मोड़ पे दिखती अब कोई नयी दुविधा।।
ग़ज़ल लिखूं तो उसे समझाये कौन?
शायरी लिखूं तो उसे बताये कौन?
कभी लिख देता हूं एक छोटी सी कविता,
मगर दिख जाती है उसमें भी उसे कोई दुविधा।
अगर लिख दूं कविता में उसे मैं चांदनी
तो दो दिन तक मुझसे कोई बात नहीं।
अगर समझाऊं उसे कि कविता क्या है
तो पूछने लगती है उससे क्या रिश्ता है।।
July 21, 2022
बहुत सुंदर । शब्दों का सही प्रयोग करे है ।।
July 28, 2022
Very nice
July 29, 2022
Bahut sunder kamal
July 29, 2022
Good bhai acchi kahani h