-डॉ. आभा सिंह भैसोड़ा, हल्द्वानी, नैनीताल
ओ गौरैया! सोन चिरैया,
क्यों अब तुम ना दिखती हो?
मेरे घर की रौनक थी तुम,
क्यों देहरी पार ना करती हो?
शुभ संकेत, जो साथ तुम्हारे,
आने से रह जाते हैं।
मुनिया गौरैया कब आयेगी?
सूने घर दीवार भी पूछते हैं!
कीट नाशक और टावर आतंक,
हमारी राह का है रोड़ा।
हंसती खेलती प्रकृति हमारी को,
गुमनामी की राह में है मोड़ा।।
मानव के ही हाथ में है अब,
हमारी सलामती का बीड़ा।
पर्यावरण में उचित सहयोग करे,
तो ही लौट सकेगा हमारा जखीरा।।