-किरन पंत’वर्तिका’, हल्द्वानी
जब आकाश धरा से कहता है
तेरी कोख में जब कोई रोता है
मानवता जब कुम्हलाती है
मेरी आंख से आंसू बहता है।
जब आकाश…….
रिमझिम फुहारों के बीच में
कोई अश्रु चक्ष छुपाता है
कोई रातों को सन्नाटे में
खुद को खुद से ही बचाता है
जब आकाश……..
तेरे आंचल में जब नारी को
कोई दुष्ट सताने आता है
काली घनघोर घटा बनकर
बादल भी गरजने लगता है
जब आकाश……..
प्रेम और सम्मान जहां
दो कौड़ी में बिक जाता है
अपनी वसुंधरा का जब
कोई मान नहीं रह जाता है
जब आकाश….……