जीना सिखाया जिसने वो अंदाज पिताजी,
मेरी खुशी का सबसे बड़ा राज पिताजी।
चलना सिखाया जिसने संस्कार भी दिए,
ऐसे ही खुश मिजाज है वह मेरे पिताजी ।।
बचपन से यूं खेले थे जवानी में पिताजी,
हंसते हंसाते रहते कहानी से पिताजी,
जब भी जाते मेले में लाते थे खिलौने,
बचपन की वो यादें ही निशानी है पिताजी।।
सूरज की तरह तेज थे वो मेरे पिताजी,
बरगद की तरह छांव भी थे मेरे पिताजी,
दुख दर्द तकलीफों को यूं पी जाते थे मगर,
परिवार के दुख दर्द में हकीम पिताजी।।
जब दूर देश नौकरी में जाते पिताजी,
कुछ ख्वाहिशें परिवार की ले जाते पिताजी,
गर्मी सर्दी लु को वह सह जाते थे मगर,
हर दर्द को वो मां से छुपाते थे पिताजी।।
भानु की तरह गर्म घर की ज्योत पिताजी,
भक्ति भाव से थे ओत-पोत पिताजी,
जीते जी जन्नत को दिखा देती है वह मां,
मरने के बाद खलती कमी वह है पिताजी।।
चलना सिखाया जिसने संस्कार भी दिए।
ऐसे खुशमिजाज है वो मेरे पिताजी ।।
– पं विपिन चंद्र जोशी
खटीमा (उधम सिंह नगर) उत्तराखंड
June 05, 2020
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जीना सिखाया जिसने वो अंदाज पिताजी
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