जीण् यैधैं कौंनी

-भाई जिले !
-हूँ कौ भाई नफे !
-आज उदास हैबेर जै किलै भै रौछै?
-के न भाई यौ जिंदगी हैबेर निआंश् है गयूँ
-हाई उ किलै?
-भाई सबै जाम् करी ढेपू टाक् लगैबेर एक धंद शुरू करौ उ फलापत नि भै, आब् समजै में न ऊनै के करूँ कबेर।
-त यमें यतू निआंश् किलै हुँछै? थ्वाड़् कोशिश और मिहनत आइ कर सब ठिक है जाल्।
-खैर तू मेरि छोड़् आपणि सुणा। आज त्यार् मुखड़ि पर बड़ि रौनक लागनै। काँ बटी ऊनाछै?
-भाई आज इन्डिया गेटकि सैर कर बेर ऊनयूँ।
-अरे वा! पैं वाँ के-के देखौ?
-वाँ अंग्रेजोंकि सेवा करन-करनै पैल बिश्व युद्द और अफगान युद्दों में मारी गई चार बीसी दस हजार भारताक् सैनिकों याद में अंग्रेजन् द्वारा बणाई युद्दै निशाणि (स्मारक रूपी) इन्डिया गेट देखौ, यैकी गब्यूराक (मेहराब) तली आजादीक बाद थापना करी गई अमर जवान जोति कैं ख्वर टोर करिबेर जौं हात (नमन) करी। इन्डिया गेटाक् अघिल-पछिल घूमन-घूमनै पाणि पुरि खाई और जिले सिंग दगड़ी बात चीत करै।

-अरे भाई मैं वाँ काँ मिलि गयूँ। किलैकि मैं त ब्येई आपण ख्वर पकड़ी बेर घर में ईं पड़ रैछी।
-भाई वु जिले सिंग क्वे और छी। हमन् में नजर पड़तेई धाद लगै बेर आपणि पास बुलै ल्हे,बैलूण बेचनाछी। आज हैं मणी साल पैली नाईक (बालबर) काम करछी। दिल्लीक् ऐंड्रुज गंज इलाक में मालिक सनी दुकान में जिले सिंग मालिकैकि परि काम करछी। भौतै मुफट आदिम भै,आपण घागिनाक बावन कैं काटन-काटनै उनर खूब मनोरंजन लै करनै रौंछी और सनीयकि टाँग खिंचाई लै करनै रौंछी।

-फिर वु बैलूण किलै बेचण लागौ?
-वीकि मालिकैकि शराब पिणी आदतल एक दिन वीक एक्सीडेंट करवै दे। सनी आपण परवार,आपणि दुकान और जिले कैं छोड़्बेर सदा लिजी चलि बसौ। जिले भल कारीगर छी, पैं उकैं काँई लै काम न मिल। शैद वीकि उमर और बावन में ऊनेर स्यतपन् उकैं काम मिलणाक् बीच में ऐगौछी।
और वु बिचार् इन्डिया गेट पन बैलूण बेचण लागौ।
होई पैं वु निआश् न छी। वीक भितेर जिंदगी कैं जींणकि लौ देखींणै। वु और लोगनकि चार निआंश् हैबेर आपण जीवन बरबाद करण हैं भल मिहनत करिबेर आपण और आपणि परवारैकि गुजर-बसर करण में लागी छ। मल्लब कुल मिलैबेर खुशि छ। उसिक दगड़िया जीण यै धैं कौनी।
-बात त तू ठिक कूँनाहै भाई।
जिले सिंग कैं यौ त्यर दगड़ू आपणि सीख (प्रेरणा) बणाल और जिंदगी कैं लड़न-लड़नै बिताल।
-आब् आछै न लैन में,
-होई भाई यमें क्वे भैम न्हाँ देरल आयूँ पर भलिभैन आयूँ।

मूल लेखक – सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली
अनुवादक – राजेंद्र ढैला, हल्द्वानी, उत्तराखंड।

Social Share

gtripathi

Write a Reply or Comment