कभी जब भी मेरे पापा ; मेरे नजदीक आते थे;
पकड़के अंगुलियां पापा; मुझे चलना सिखाते थे|
बहुत अद्भुत था वो बचपन; सुधा सा प्यार मिलता था;
हमारी मांग पे पापा; हमें सब कुछ दिलाते थे||1||
पकड़ के हाथ आंगन में; झुलाते थे मेरे पापा;
बिठा के अपने कंधे पर; घुमाते थे मेरे पापा|
बताओ कैसे मैं भूलूं; वो बचपन याद आता है;
न पाया प्यार फिर वैसा; जो देते थे मेरे पापा||2||
मेरा बचपन ही अच्छा था; सभी का प्यार मिलता था;
खड़े हो साथ में पापा; तो सब अपना ही लगता था |
बिना कारण मैं पापा से ;कभी जब रूठ जाता तो;
वो थपकी प्यार की देते; गले से मैं लिपटता था ||3|
मेरी उम्मीद और विश्वास की ;पहचान है पापा;
है सागर से बहुत गहरे; मेरे अरमान है पापा|
न दुनियाँ में कोई त्यागी,, मेरे पापा के जैसा है;
है अंबर से बहुत ऊंचे ;मेरे अभिमान है पापा||4||
गरीबी थी मगर ;खर्चा उठाते थे मेरे पापा;
कमी थी धन की; पर खुशियां लुटाते थे मेरे पापा|
बड़ी कठिनाईयां थी ; पर सभी का ध्यान रखते थे;
छुपा के खुद हजारों गम; हंसाते थे मेरे पापा||5||
-रामरतन यादव ( सहायक अध्यापक)
राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालय खटीमा उधम सिंह नगर उत्तराखंड