है कौन बसा पल पल में ?
घन तिमिर सहज मिट जाता
कौन दीप्त है दीपों की झलमल में?
धुन किसकी गुंजित उपवन में.
बोल किसके अलि गजल में?
चपला बन ये कौन थिरकता घहराते बदल में?
अमृत रस से सींचे जग को
कौन घुला है जल में?
उष्नित करता जड़ चेतन को
कौन दहकता अनल में?
बनकर जीवन कौन धड़कता
उर के अँतस्तल में?
बावरी बन फिरती रही
यहाँ वहाँ जल थल में.
राह दिखाई सदगुरू ने
प्रभु को पाया चल अचल में.
-तारा पाठक, हल्द्वानी।