लाजिमी है जीना उसका हमारे लिए,
नायाब है ; खि़ताब है|
सुंदर पंखुडियों से सजा गुलाब है ;
जो सज़ा कितनी भी सहन कर ले
हमारी सौ खताओं के लिए,
विश्व में हे पिता न तेरा कोई जवाब है।।
अमावस में जब गलियों में निकलता,
बिन मेहताब रहता मैं ठिठुरता।
इंतजार रहता कि कोई प्यार की ऐसे में थपकी देता,
अब तो सेना की टुकड़ी छोड़ स्नेह के बादलों की वर्षा कर देता।।
है मुझको याद वो सारे पल ;
मैं तो सैकड़ों बातें छिपाता ।
पर बिन कुछ बोले तू सब पहचान जाता;
इसलिए तो तू है मेरा विधाता।
तेरी आहट तो , पपीहे की दूर दमकती पीहू का सैलाब है ;
विश्व में हे पिता न तेरा कोई जवाब है।।
हल्के हल्के वक्त गुजरा ;
यूॅं तो उम्र बढ़ी मेरी।
पिता से ज्यादा मित्र बड़ा ;
कुसंगत ने संगति घेरी।।
मैंने तो दारू ,दम , गुटके का पान छुपाया;
तूने तो पीयूष का मानो नीर बगाया ।
ना मैंने समझा ; ना मैंने बूझा
केवल पैसे की गड्डियों से भरा बैंक तूझे जाना ।
फिर भी मैं मान गया ; मान गया रे
तेरा बटुआ आज तक कभी मेरे लिए नहीं सूखा।
कठोर – कढ़ी खता सहकर भी तू दिल का बढ़ा नवाब है ;
विश्व में हे पिता न तेरा कोई जवाब है ।।
वह भी कैद कर लूं ;
जब मेरी गलतियों को छिपाया वैसे ।
क्या करे , क्या करे ! मालिक ने तो ;
पिता को बनाया ही ऐसे ।।
भले ही आमदनी से गरीब है ;
मेरे लिए भोला – सा चार रोटी रोज़ बचाता ऐसे बाबू शरीफ़ हैं ।
मानो गाढ़ी चाशनी के तार सा हमारा प्रेम है ;
तेरे लिए तो हर पारस छोड़ दूं ऐसा तू हेम है ।
पर भूल हो गई मुझसे कि समय की ताकत का इल्म ना था ;
आ जा ना वापस मेरे पास
यूं लिखते लिखते मेरा दिल दुख रहा , हाथ जकड़ रहे ;
ऐसे तो माफी लायक नहीं
तेरे पालन से दहकती मशाल हूं ।
खुशनसीबी से मिलती औषध तू,
पूर्ण बिंदु रूप आसमां में चमकता सवाब है ।
विश्व में हे पिता न तेरा कोई जवाब है।।
विश्व में हे पिता न तेरा कोई जवाब है।।
-अभिजीत सिंह देवड़ी
विद्यालय - लेक्स इंटरनेशनल स्कूल भीमताल
June 9, 2020
Really very emotional
June 10, 2020
मन को गहराइयों तक छु लेने वाली कविता है, कवि बहुत सुंदर शब्दों का प्रयोग कर अपनी भावनाओं में परमपिता परमात्मा के प्रेम संबंध को प्रकट किया है, आशा है आगे भी हमें मधुर व प्रेरणा दायक कविता पढ़ने को मिलेंगी।