September 06, 2017 0Comment

भागीरथी

दादी मै भी चलूँगी तेरे साथ ”

” कहाँ चलेगी तू मेरे साथ ? ”

” जहाँ तू जा रही है ”

” तुझे कहाँ ले जाऊँगी उतनी दूर , स्कूल का क्या होगा ? ”

” मै आ कर सब काम  पूरा कर लूँगी ”

” ओ दुलहिन ! समझा इसे क्या करेगी मेरे साथ , अच्छे  कपड़े भी नही है इसके पास ”

” माँ ने हाँ कह दिया है ”

” ईज़ा तो ले जा ना इसे फिर ये घड़ी आए ना आए, इसी बहाने देख लेगी शहर की चकमक “ रुद्रवंती  की माँ बोली

” तू लाटी हो गई है ! इतनी दूर ले जाता है कोई लड़की को ? ”

” ना ले जाता हो कोई , पर भंडारी जी बहुत अच्छे  हैं , जब भी गांव आते हैं कुछ ना कुछ लाते ही हैं रुद्रा और खीमानंद के लिए ”

” वो तो है उन्हें अपनी मिट्टी अभी भी लुभाती है | मेरी कला को हमेशा मान दिया है उनके परिवार ने ”

“फिर !”

” ठीक है ले जाऊँगी , खुश ”

रुद्रवंती की दादी  ” गिदारिन  ”  हैं | बड़े बेटे की शादी में गई थी भागीरथी , अब बेटी की शादी है | बड़े दिल वालों के लिए मीलों का क्या गिनना | यूँ तो शहर में भी कमी नही गिदारो की| सब पढ़- लिख गए हैं सो कामचलाऊ रीति-रिवाज शहर के लोग ही निभा लेते हैं किताबों से पढ़ कर | ब्राह्मण गिदार पुराने जमाने की बातें हैं | मैरिज होम और वेडिंग प्लानर ने सबको एक जैसा बना दिया है | कोई नियम कानून विवाह के बेतहाशा खर्चे पर लगाम लगा पाए ये तो समय के गर्भ में है | डीजे के आगे  लोकसंस्कृति भी आलो के साथ खत्म होती जा रही है | अकेली इस कला से गुज़ारा नही वरना रुद्रा  पर बड़ी कृपा है ” वाग्देवी ”  की |

यूँ तो 75  होली, सावन देख चुकी है भागीरथी पर खाने में ” नमक-चीनी ” उसी की कला की बदौलत है | रुद्रा के दादा जी को गुजरे उतने ही साल हो गए जितने की रुद्रा है | एक टुकड़ा जमीन है, सो बेटा उसी को जोतता -बोता है | आज भी बहुत से ब्राह्मण सुदमा ही हैं |

भोर के साथ रुद्रवंती  के सपने रविकर से चमकने लगे | स्टेरिंग और पहियों के साथ  भागीरथी ने ख़ुद को जोड़ दिया | मन के किसी कोने में नारीभय भी है | रुद्रवंती अभी 11 की है पर जानवरों से ज्यादा डर आदमियों का है | औरत जात होना काफ़ी है उम्र और हाड़ -मांस अपने आप रहता है | गाहे-वगाहे एनजीओ वाली बहनों से सुना है भागीरथी ने ये सब | उसका गांव तो मान-मर्यादा वाला छोटा सा परिवार है |

रुद्रवंती का मन तो रात दो बजे के जिओ के नेटवर्क की स्पीड सा दौड़ रहा है | वहां का घर ,सामान, लोग ,आज वह  उपत्यिकाओ से निकल कर शहरी मैदानों में खेलेगी | बसस्टेंड पहुँच कर भागीरथी ने पीसीओ  से फोन कर दिया सो ड्राइवर गाड़ी  ले कर आ गया था | सबकुछ  टीवी और किताबों जैसा , रात होने पर भी लग रहा जैसे सूरज उसके बालों में टका हो | घर में घुसते ही रुद्रवंती की पलके पुतलियों पर आने को राज़ी नही थी | दादी का हाथ जोर से हिलाते हुए बोली

” देख दादी देख ! दीवारें कितनी रंगीन है ! ”

” हाँ देख रही हूँ ”

” देख !देख ! उस दीवार पर तो अपने गांव के पहाड़ , गूल , गदेरे सब बने है ! ”

दादी को एक तरफ़ खींचते हुए ” वो देख छत पर काँच का कितना बड़ा गुलदस्ता है जो गिरा तो तू तो गई काम से !” और  खी- खी करके हँसने लगी

” मैंने सब पढ़ रखा है ये ”

” तभी आई तू जिद करके ”

” फिर ”

खाने में क्या-क्या खाया नाम रुद्रा को भी नहीं पता | कमरे , स्नानघर , पूजाघर देखते-देखते बरामदे में जमीन पर ही सो गई | अगले दिन सुआल पथाई के दिया से शगुन आखर की शुरुआत हुई | रुद्रा देख रही थी कि इस शीशमहल के लिए दादी अपने हुनर की पोटली में से क्या निकालेगी | सब देखते रह गए उसकी इस उमर का जोश | वरना यहां तो 50 तक बीपी, डाइबिटीज सब मेहरवान  हो जाते है | एक दिन बाद बारात आने को है | अब एक-एक रसम, रीति-रिवाज रच-रच के करने का बच्चों पर समय नही , सब यहीं के हिसाब से करना है | यहां का  ” महिला संगीत ” इतने में तो गांव में 10 शादियाँ  हो जाएँ !

” देख दादी ! मेरा सलवार -कमीज बहू जी ने दिया ”

” यो तो भल लग  री ”

” चप्पल नही देखी तूने , ये कंगन देख ”

” इतना क्यो कर रही है बहू जी आप ?” भागीरथी की आँखें छलक गई

” तो क्या हुआ आमा ये भी तो बच्ची है देखो तो कितनी खुश है ” भंडारी जी की पत्नी ने कहा |

” मै तो पहचान भी ना पाई ! नजर ना लगे आज ही जानी हूँ कि मेरे घर भी अप्सरा जन्मी है ”

रुद्रवंती दादी की गोद में सिर रखकर बोली ” मैंने सोच लिया कि पढाई-लिखाई के साथ तेरी इस कला को इन्हीं शहरों में लाऊँगी ” और खिलखिलाकर बाहर की ओर दौड़ गई  |

रास्ते में भंडारी जी का छोटा बेटा शिवाय अपने दोस्तों के साथ आ रहा था रुद्रा उड़ती तितली सी उससे जा टकराई ! उसने रुद्रवंती को सम्हाला और पूरे अधिकार से बोला

” क्या रे रुद्रा कहाँ दौड़ी जा रही है गांव सावुत जाना है कि नहीं ?”

रुद्रा  दो -तीन दिनों में सबसे घुलमिल गई थी सो बोली

” ददा देख लो पूरी जाऊँगी तुमने बचा लिया ना मुझे  ”

” हाँ -हाँ ठीक है पर मेनगेट से बाहर मत जाना ” शिवाय अपने काम में लग गया पर उसके दोस्त रुद्रवंती के पैरों के निशानों पर नजर गड़ाये  रहे |

बारात ,पूजा-पाठ, खाना-पीना सब होने के बाद फेरों के समय अचानक भागीरथी को लगा कि रुद्रा दिखाई नही दे रही कहीं | कहाँ गई होगी ? इधर-उधर  देखा घर के सब लोगों से पूछा | सब यही कहा रहे कि अभी तो यहीं थी |

उधर शिवाय अपने दोस्तों को ढूँढने में था | जब उसे रुद्रवंती के गुम होने का पता चला तो याद आया कि उसने ही तो रुद्र को अपने दोस्तों के साथ अन्दर भेजा था| दोनों का मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा था | गाड़ियाँ भी वहीं खड़ी थीं | मैरिजहोम की हद  शिवाय जनता था | सो खोजते-खोजते देखा कि कच्ची कली को ” नरगिद्द ” नोचने मसलने की फिराक में है | शिवाय ने दोनों को जोर का धक्का दिया और रुद्रा चीखते हुए शिवाय से चिपक गई |

” कोमल मन दरकने से बच गया ” मन ही मन शिवय ने सोचा , इन दोस्तों से तो शादी के बाद निबटूगा  |

भागीरथी तो बेहाल थी कि क्या मुँह दिखयेगी बहू बेटे को | तभी शिवाय के साथ रुद्रवंती को देख कर प्राण हरे हो गये | सोचा चलो शहर की चकाचौंध इस बार तो लानत-मलानत से बच गई |

” थक गई थी सो , सो गई थी बगीचे में , अब इसे अपने साथ ही रखना ” भागीरथी को सब समझ आने लग गया |

अगले दिन बहू जी ने ढेरों सामान देकर शिवाय के साथ गाड़ी से विदा किया भागीरथी को रुद्रवंती के लिए माफी माँगी |

भागीरथी बोली ” ना बहू जी आप माफी क्यो मांगती है , जब तक शिवाय रुपी कृष्ण है दुनिया में तब तक रुद्रवंती जैसी द्रौपदी का चीरहरण नही होगा| जो जीती रही तो शिवाय की शादी में बिना बुलाये  रुद्रवंती के साथ आ कर शगुन आखर मै ही गाउंगी |

लोकेष्णा मिश्रा,  हल्द्वानी

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