October 04, 2017 5Comments

बस कह दो जरा तुम

चल पड़ूँगी साथ, थामे हाथ, बस कह दो जरा तुम
जोड़ लूँगी साँस, तुम संग आस, बस कह दो जरा तुम

ज्यों हवा के स्पर्श से डाली, लताएं झूमतीं
चाँद औ’ सूरज की किरणें, ज्यों शिखर को चूमतीं
चूम लूँगी मैं तुम्हारा भाल, बस कह दो जरा तुम

राह पथरीली हो या, पथ में हों कांटे अनगिनत
मैं तुम्हारे साथ ही चलती रहूँगी अनवरत
वीथिका मन की सजा लूँ आज, बस कह दो जरा तुम

क्यों भला सन्देह मेरे प्रेम पर करते हो तुम
या स्वयं ही दृढ़ नहीं हो इसलिए डरते हो तुम
हर वचन की मैं निभा दूँ लाज, बस कह दो जरा तुम

चल पड़ूँगी साथ,थामे हाथ,बस कह दो जरा तुम
जोड़ लूँगी साँस, तुम संग आस, बस कह दो जरा तुम

-क्षमा गौतम,
शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश

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gtripathi

5 comments

  1. So touching and emotional poem
    God bless you with more and more talent.

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  2. बहुत ही सुंदर

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  3. Very nice
    Keep on your active efforts towards perfection.
    All my blessings are with you

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  4. बढ़िया

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  5. i am spellbound after reading the poem
    this is really amazing and excellent

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