September 18, 2017 0Comment

कविता की खोज में…..

कभी बारिश को काट लेते हैं
तो कभी
सूर्य की किरणों को नाप लेते हैं,
कभी सड़क किनारे
रोते हुए बालक के आंसुओं को पहचान लेते हैं,
तो कभी
दुष्कर्म पीड़िता का दर्द जान लेते हैं,
कभी छलांग आग में लगाते हैं
तो कभी
हवा पर दौड़ने लग जाते हैं,
कभी देश भक्त हो जाते हैं
तो कभी
प्रेम के कुंए में डुबकी लगाते हैं,
कभी चांद पर अंधेरे संग बतियाते  हैं
तो कभी
मरूस्थल की दूरी संग हो लेते हैं,
कभी भीड़ में कुछ ढूंढने लग जाते हैं
तो कभी
अपनों से ही नाराज़ हो जाते हैं,
कभी किसी समारोह में उपस्थित नज़र आते हैं
तो कभी
तन्हाई के संग महफिल सजाते हैं,
कभी पूरानी तस्वीरों में कुछ खोजते हैं
तो कभी
आज को झकझोरते हैं,
कभी टूटी पतंग की डोर जोड़ देते हैं
तो कभी
तितली के रंग में हो लेते हैं,
कभी निराश मानव से मिलते हैं
तो कभी
आत्मविश्वासी दानव से लड़ते हैं,
कभी छलकते प्यालों को चूमते हैं
तो कभी
इनमें मदमस्त होकर झूमते हैं,
कभी गगनचुंबी चट्टान पर पहुंच जाते हैं
तो कभी
पाताल में टहल कर आते हैं,
कभी देश की राजनीति को खोलते हैं
तो कभी
प्राकृतिक परिस्थितियों में कुछ टटोलते हैं,
कभी अनाथ को खाना देकर खुश होते हैं
तो कभी
कर्ज़ लेकर लड़की की शादी होते देख झेंपते हैं,
कभी भ्रष्टाचार से प्रताड़ित नजर आते हैं
तो कभी
सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं,
कभी त्योहार में बालक बन जाते हैं
तो कभी
पड़ोसी के दुख में शामिल हो जाते हैं,
कभी बुजुर्गों का दर्द बतलाते हैं
तो कभी
बीते दिन याद करने लग जाते हैं,
कभी जंगलों में बसेरा लगाते हैं
तो कभी
खुले मैदान में हवामहल बनाते हैं,
कभी पक्षियों संग बतियाते हैं
तो कभी
शेर-सी दहाड़ लगाते हैं,
कभी धर्म की चौखट पर जाते हैं
तो कभी
खुद ही ख़ुदा बन जाते हैं,
कभी बेरोजगार से बन जाते हैं
तो कभी
राजा की तरह आदेश सुनाते हैं,
कभी तकनीक पर पैनी नजर जमाते हैं
तो कभी
अपनी संस्कृति का आधार खिसकता देख झल्लाते हैं,
कभी औंस की बूंद पर सो जाते हैं
तो कभी
धुंध में भी इंसानों को पहचान जाते हैं,
कविता की खोज में
कवि महोदय,
अपने चंचल मन के द्वारा
ना जाने,
कहां-कहां चहलकदमी करते पाए जाते हैं !
दिनेश ‘दिनकर’
9911994774
सोनीपत (हरियाणा)
• सामाजिक विषयों पर समाचार पत्रों में  स्वतंत्र लेखन
• ….. तो समझो प्यार हुआ !  ( काव्य संग्रह  प्रकाशित)
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