September 18, 2017 7Comments

कबूल करो

परवाज़ नहीं,
आवाज़ नहीं
न साज़ यहाँ..

जाग मछँदर गोरख आया,
तबला तब भी बोला था
महफ़िल सूनी, जोगी बोला,
भूमण्डल तब डोला था..
कबूल करो..

राजघराने छूट गये,
न राजघमण्ड छूट रहा
काल-खंड कई बीत गए,
न राजधरम कुछ याद रहा..
कबूल करो…

नाद-ब्रह्म सब छूट गए,
धर्म पिपासा कहीं नहीं
वो बैभव सारे छोड़ दिए,
अब अवधपति भी कहीं नहीं..
कबूल करो…

अपने-पराये सब मौन रहे,
जब शिखर चढ़े, मेरी और बड़े
कुछ याद रहा, कुछ भूल रहे,
”गौनिया” न कोई रतन जड़े..
कबूल करो..

 -बीएस गौनिया, हल्द्वानी
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gtripathi

7 comments

  1. bahut hi badiya kavita paath hai…
    keep it up

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  2. achcha likha hai……
    aur likho likhte raho… likhna achcha hai

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  3. me aaapki kavita padhte rahta hu fb pe

    Reply
  4. अपने-पराये सब मौन रहे,
    जब शिखर चढ़े, मेरी और बड़े……

    बहुत खूब लिखा।।।
    जब कुछ हासिल होता है तभी सब हमारी ओर आते हैं या हमें पूछने लगते हैं…..

    शुभकामनाएं …

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  5. gauniya bhai lge raho…
    jaha n jaye kavi
    waha jaye kavi

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  6. tu kab kavi ban gya….
    kisi ladkee ne dhokha de diya kya ?
    badiya hai.. lage rah

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