आ गया फाग |
छिड़ गया राग ||
गोरी की बदली चाल |
जब हुए गाल लाल ||
उढ़ गयी चदरिया |
बेरिन बीच बजरिया ||
जो गिर गया गुलाल |
अंग-अंग हुआ बेहाल ||
छेड़ रही बंसती तान |
भंग में फसी जान ||
आ गया फाग |
छिड़ गया राग ||
बच्चा – बूढे़ हुए जवान |
खड़े भर पिचकारी तान ||
हो गये रंग-बिरंगे |
तन-मन सब चंगे ||
होली खेलो मन से |
लालच छोड़ो तन से ||
मर्यादा न छोड़ना |
बेर-भाव सब भूलना ||

– मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ग्राम रिहावली, डाक तारौली गुर्जर,
फतेहाबाद, आगरा, 283111
February 14, 2018
बहुत सुंदर फाग । फागुन आया याद आया फाग ।