-प्रतिष्ठा पांडे,रूद्रपुर, उधमसिंह नगर
वे दिन भी क्या दिन थे
यह सोच सोच कर रोते हैं
आए दिन स्कूल के सपने आते हैं
जब हम सोते हैं
दोस्तों के साथ मस्ती से
जब हो जाती थी लड़ाई
पर आजकल रगड़ कर
धोनी पड़ती है कढ़ाई
लंच टाइम में गोल घूम कर
हम सब है जाते थे
और आज मोबाइल में
फ्री फायर में किल बोल कर जाते हैं
वह स्कूल का मैदान और
दोस्तों का खाना खाना
वह म्यूजिक रूम की सजावट
और हमारा बेसुरा गाना
वह नाच नाच के पसीने से
तर हो जाना
और स्पोर्ट्स पीरियड में पानी
पीते ही जाना
क्लास में ही दोस्तों के साथ
खेला करते थे खूब
पर आज गेम में सब
कहते हैं नूब
मैम का वह चांटा
सीधे गाल में पड़ता
जैसे कढ़ी चावल में
लगता है तड़का