– हिमांशु नेगी
उन पर्वतों से मैंने पूछा
यह लाल क्यों है तुम्हारी भूमि
क्यो ये नीर बह रही लहू से ,
क्यों यह गगन रूठा है मुझसे ।
रूठने की वजह बेशक व कारगिल है
जहां पग बड़े उन अनजान के,
जो हथियाने आए थे ताज हिंदुस्तान के
भगाया उनको ज्ञान से
हथियार से व विमान से
घायल तो हमारे भी बहुत हूए,
लेकिन तिरंगा फहरा शान से।
एक तिरंगा लहरा आया
एक आया उस पर लिपटकर,
यूं तो खुश था पूरा हिंदुस्तान
बस एक खामोश थी उसकी मां।
आंखें नम थी उस मां की
जिसने अपना बेटा खोया है
दिल तो खूब उदास था ,
पर एक कतरा ना आंसू रोया है।
यूं तो सर झुके थे हजार
बस एक सर गुरुर से उठा था ,
वह कोई और नहीं उस शहीद का पिता था।
गगन झूका , पर्वत झूका
झूके सब अभिमान से
सज गई है भारत भूमि ,
उन जवानों के बलिदान