-पूजा नेगी (पाखी) अकेली ही,आँखों मे उम्मीद लिए चलती हूँ। खमोश लब्जों में,दबे जज्बात लिए चलती हूँ। गिरती हूँ हर बार,किसी अपने की चोट से, फिर भी,मैं उठने की आश लिए चलती हूँ। बेशक ये उम्मीद टूटी,आँखे भी नम है मेरी फिर भी मैं ख्वाबों का कारवां लिए चलती हूँ। कहने को सब अपने हैं,दिल […]