Tag: trivendra joshi

अपने बाबूजी

माँ के पीछे माँ बन जाते अपने बाबूजी, माँ के जैसा करते जाते अपने बाबूजी। चूल्हा चौका पोछा बर्तन घर के बांकी काम, माँ के पीछे ना करते आराम हमारे बाबूजी। माँ के पीछे माँ बन जाते अपने बाबूजी, माँ के पीछे माँ के जैसे भोग लगाते बाबूजी, माँ के जैसे वृंदावन को नीर चढ़ाते […]

किस्सा कैश का

वाउचर-दर-वाउचर मिलाया जाता है, भूल सुधार को सिर खपाया जाता है। चार नहीं छ:- सात तक काम होता हैं, उदास मन ही अन्त में घर पहुँचाता हैं। तब काउंटर का तापमान गरमा जाता है, जब कैश दराज में कैश गड़बड़ा जाता है। मुन्नी की गुड़िया, मुन्ने का खिलौना, कैंशल हो जाता है बाहर खाना खाना। […]

अबकी बार दिवाली में

घर-आँगन का मैल हटाए, मन का तम भी टिक ना पाये दीप ज्योति से होकर उज्वल, जीवन सबके खिलते जाए सत्य शिरोमणि यथा योग्य, सब जन का आभार जताए ज्ञान-ध्यान का दीपक जल जाए, अबकी बार दिवाली में भूले-भटके रिश्ते जुड़ जाए, मन की गाँठे सब खुल जाए क्षमा सबकी गलतियाँ करके, अपनी भूलों पर […]