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मैं हिंदी हूं

-शैलेंद्र भाटिया, दिल्ली छोटा अ से शुरू होकर ज्ञ तक सिमटी हुई हूँ मैं देवनागरी की बुनियाद पर खड़ी मैं सभी की ज़ुबान हूं जहां मुझे सूर ,तुलसी, कबीर ने सींचा है तो वही महादेवी ,पंत ,निराला ने निखारा है प्रेमचंद के गोबर व होरी की वाणी हूं तो अज्ञेय व मुक्तिबोध की नई कविता […]

माँ

माँ तुम हर पल रचती हो मुझे, भ्रूण से लेकर आज तक संभालती रही हो तुम, तुम्हारा चित्त, तुम्हारी चिंता, तुम्हारा चिन्तन, तुम्हारी चाहत, तुम्हारा चूल्हा-चौकी, मैं हूँ तुम्हारी पूजा, मनौती और व्रत भी मैं हूँ। मैं जब एक कदम बढ़ता हूँ, तुम दस कदम बढ़ती हो, मेरी एक सफलता पर घर के देवी-देवता से […]