-शैलेंद्र भाटिया, दिल्ली छोटा अ से शुरू होकर ज्ञ तक सिमटी हुई हूँ मैं देवनागरी की बुनियाद पर खड़ी मैं सभी की ज़ुबान हूं जहां मुझे सूर ,तुलसी, कबीर ने सींचा है तो वही महादेवी ,पंत ,निराला ने निखारा है प्रेमचंद के गोबर व होरी की वाणी हूं तो अज्ञेय व मुक्तिबोध की नई कविता […]