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ऐ प्रकृति तू

-प्रेमलता, चौखुटिया,  अल्मोड़ा ऐ प्रकृति तू ऐ प्रकृति तू इतनी अद्भुत कैसे हो गई है? ना कोई जादू ना कोई चमत्कार फिर ऋतुओं में परिवर्तन कैसे लाती है? ऐ प्रकृति तू… कभी जाड़े से तेरे तपन बिन देह का लहू भी जम जाता! तो कभी तेरी हवा व छांव बिन जीवन तक थम जाता है! […]

अदृश्य स्नेह

न अश्रु बन छलकता है, ना मुख पे कभी झलकता है। पर सागर से भी गहरा सदा, अदृश्य स्नेह पिता का होता है। बिन सोचे बिन कहे मिले, उनसे सुख वैभव सभी, फिर जगकर दिन और रातों को भी, ताउम्र चैन से कभी ना सोते। थामकर उंगली जब से, अंगना में चलना सिखलाए, फिर दुनिया […]