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साहित्यिक परिवेश का शैशव काल

-मोहन चंद्र जोशी, वरिष्ठ साहित्यकार लालकुआं हरफनमौला साहित्यिक संस्था और हास्य-व्यंग के सशक्त हस्ताक्षर गौरब त्रिपाठी एक दूसरे के समपूरक, ध्रुव हें, संभवतया वह किसी परिचय के मोहताज नहीं। साहित्यिक परिवेष अभी कुछ ही वर्षों का हुवा है इसे शैशव काल कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी , पर जिस सुदृढता के साथ गतिविधियों का […]

‘भल लागौं ‘

गुईं चुपड़ि बात सुणण भल लागौं। आफी तारीफ आपणीं कौंण भल लागौं।। दुसरैकि काट और निखाणि धौ कै। दिन इसीक्यै बितौण भल लागौं।। लोग भौतै छ्न अगल बगल उनुँकैं। औज्ञै झुठ साँच् हरौंण भल लागौं।। हाथम् हाथ धरि चै रीं अकुइ भौतै। पकाइ खाँण् बिछाई बिछौंण भल लागौं।। जो छु मुख धैं वी छु भल […]

होली का श्रृंगार ठिठोली

हास्य व्यंग की अद्भुत पाठशाला है होली ठिठोली का पुख्ता आलम हमजोली शबनम कहती भीगत हैं गात ना सताइये ये रंगो-बरसात ना लाइये बसंती जामुनी गेहुऐं रंग भरकर हरित श्यामा अंगूर चासनी लेकर बांसुरी की धुन,थामे राग के घेवर कोपलों के छा गये हैं साख पर जेवर। सालती है रात, मत जगाइये सकुचाती है गात […]