तुम थे सावन और मैं नन्हीं बदरी तुम गरजते और मेघ ले आते मैं सहमी सी अपलक तुम्हें निहारती तुम रिमझिम बरस जाते और मैं अपने अंदर किणमिण करती बूंदों को छिपा लेती क्योंकि तुम्हारे सामने उनकी कोई बिसात न थी जब तुम्हारी गर्जन तर्जन समाप्त हो जाती तो तुम चल देते मैं स्वयं को […]