प्रात: से जहां भंग छनत है,सब रंग गुलाल उड़ाते। चारों दिशा से नर-नारी सब,होली खेलन आत।। मस्त मलंगों की जहां टोली, सभी जहां दिवाने। पान घुला के रंग जमा के,सब लूटत सारे खजाने।। गुझिया नमकीन और ठंडई,लवके चारों कोना। छनत जलेबी और पकौड़ी,बजत कड़ाही पौना।। ऊंच-नीच का भेद नहीं, जहां कोई बड़ा ना छोटा। रंग […]