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पापा की लाड़ली

वह सुनहरी यादें मेरे पापा की , रह गयी है अब मात्र बनकर परछाई। ढूंढती हैं मेरी निगाहें हर दम उन्हें, पर आँखों में ही रह गयी अधूरी चाहत मेरी और कहीं ढूंढ न पायी। सन १९९४ में जब छोड़ गए वो संसार, समस्त परिवार पर दुखों की लहर थी छायी । दूर बैठी थी […]