Tag: kiran pant vartika

लगता है ठंड बढ़ रही है

-किरन पंत’वर्तिका’, हल्द्वानी उत्तराखंड गलियां सब सुन्न पड़ गयी है दिन ढलने लगा है जल्दी हवाएं भी सर्द पड़ रही हैं लगता है ठंड बढ़ रही है। सब साथ बैठने लगे हैं घर आने लगे हैं जल्दी मिलकर खूब गप्पे चल रही हैं लगता है ठंड बढ़ रही है। यही बात सुबह में कुछ खास […]

सुनो ओ पहाड़ की बेटियों

-किरन पंत ‘वर्तिका’ जाने किसकी नजर लगी मेरे गांव को मेरी खुशियों को नीलाम कर गए। मेरे देवों की पुण्य भूमि को यह बाहरी दानव कलंकित कर गए। मगर भयभीत ना होना तुम एक पल भी यह तुम्हारी शक्तियों को जागृत कर गए। एक ने बलिदान दिया तुम संहार करोगी सुनो ओ पहाड़ की बेटियों…………. […]

हिन्दी भारत मां के माथे की बिंदी

-किरन पंत’वर्तिका’, हल्द्वानी उत्तराखंड निश्चय ही वन्दनीय है हिन्दी प्राणों में बसी हर श्वास है हिन्दी हिंदी भारत मां के माथे की बिंदी बड़ी सरल, सौम्य, सुंदर है हिन्दी। रमैनी,सबद, साखी, रहीम रत्नावली है हिन्दी महादेवी की यामा दिनकर की कुरुक्षेत्र है हिन्दी हिंदी भारत मां के माथे की बिंदी हर कवि लेखक की पुकार […]

जब आकाश धरा से कहता है

-किरन पंत’वर्तिका’, हल्द्वानी  जब आकाश धरा से कहता है तेरी कोख में जब कोई रोता है मानवता जब कुम्हलाती है मेरी आंख से आंसू बहता है। जब आकाश……. रिमझिम फुहारों के बीच में कोई अश्रु चक्ष छुपाता है कोई रातों को सन्नाटे में खुद को खुद से ही बचाता है जब आकाश…….. तेरे आंचल में […]