Tag: haldwani ke kavi

लगता है ठंड बढ़ रही है

-किरन पंत’वर्तिका’, हल्द्वानी उत्तराखंड गलियां सब सुन्न पड़ गयी है दिन ढलने लगा है जल्दी हवाएं भी सर्द पड़ रही हैं लगता है ठंड बढ़ रही है। सब साथ बैठने लगे हैं घर आने लगे हैं जल्दी मिलकर खूब गप्पे चल रही हैं लगता है ठंड बढ़ रही है। यही बात सुबह में कुछ खास […]

बीना फूलेरा बनीं साहित्यकार ऑफ द मंथ

हरफनमौला वेबसाइट की दिसंबर माह की प्रतियोगिता में रहीं विजयी हल्द्वानी। हरफनमौला वेबसाइट की ओर से दिसंबर में आयोजित मासिक काव्य प्रतियोगिता में बीना फूलेरा की कविता ‘अरे! नवयुवक…’ और कहानी ‘अक्श का धुंध’ को 500 से अधिक व्यूज मिले हैं। इस उपलक्ष्य में संस्था की ओर से उन्हें डिजिटल सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया गया। […]

हंसकर पैदा होती है वो

-हर्षित जोशी, हल्द्वानी हंसकर पैदा होती है वो, पर जिंदगी भर रोते ही रह जाती है वो, समझ कर सर का भार बियाही जाती है वो । अपनो की खातिर खुद के अरमानों का कत्ल कर लेती है वो , हंसकर पैदा होती है वो, पर जिंदगी भर रोते ही रह जाती है वो ।।1।। […]

चलते-चलते

-हर्षित काल्पनिक चलते-चलते मीत बने चलते-चलते गीत बने अल्फ़ाज थे चंद एक दिन चले और संगीत बने।। चलते-चलते… हार अनेकों मिली डगर में डंटे रहे हर एक सफर में देखा,सीखा और चले फिर चलते-चलते जीत बने।। चलते-चलते… अनजानी राहों पर हमको मिले लोग दीवाने कितने दिल ने चुना एक हमसफ़र चलते-चलते प्रीत बने।। चलते-चलते… अपमान […]

गांधी ज्यू तुम हमन कें करिया माफ

-मन्जू सिजवली महरा, हल्द्वानी गांधी ज्यू तुम हमन कें करिया माफ, तुम स्वछताक प्रेमी छिया नें, पर आज लै गंदी छन शहरोँ गल्ली, आज गों लै नी छन साफ। गांधी ज्यू तुम हमन कें करिया माफ। क्याप छ्यू हो तुमर लै टेम, एक ठऔर बे दुहर ठऔर कब चिट्ठी पुजली कब कुशलक्षेम। आज एन्ट्र्नेटक जमान […]

पहले हंसा करता था मैं

-हर्षित जोशी, हल्द्वानी पहले हंसा करता था मैं , अब जिंदगी हंस रही है मुझे पर , चांदनी रात में चांद को , चंदा मामा कहता था मैं , जब मालूम हुआ मुझे , जिस चांद को चंदा मामा कहता हु मै , ना आएगा वो मुझसे मिलने वो, न लायेगा खिलौने मेरे लिए , […]

फिर एक गुड़िया वहशी नजरों की हो गई शिकार

-बीना सजवाण, हल्द्वानी फिर एक गुड़िया वहशी नजरों की हो गई शिकार फिर देवभूमि समाज और इंसानियत हो गई शर्मसार एक अंकिता नहीं कितनी अंकिताओ को तड़पाया है फिर एक मां की सूनी कोख रोई एक पिता की आंखें शरमाई बहन की इस हालत पर एक भाई की आंखें लजाई कहते हम इसको ऋषि-मुनियों की […]

काली-स्याही

-मन्जू सिजवली महरा, हल्द्वानी जिसकी फटी हुई तस्वीर भी जलने में हिचक्ते थे ये हाथ। उसको अपने ही हाथों से सारा जला दिया। जिस कागज पर उसका नाम लिख जाता, उसी से मुहब्बत हो जाती थी। आज उसकी राख को भी पानी में बहा दिया। रत्ती भर नाराजगी देख हर बात मान जाता था। आज […]

एक हरेला मन में उगा लूँ

-गंगा सिंह रावत, हल्द्वानी मन में उथल पुथल बहुत है हर कोने में छाई उदासी है बाहर-अंदर एक-सी हलचल है कहने को तन्हाई है। एक हरेला मन में उगा लूँ उजास भीतर ही पा लूँ हुए जिससे दूर बहुत दूर उस प्रकृति को ह्रदय में बसा लूँ।।

ग़ज़ल लिखूं या लिखूं कोई कविता

-कमल सिंह, हल्द्वानी ग़ज़ल लिखूं या लिखूं कोई कविता कसम कहूं या कहूं उसे कोई दुविधा।। प्रेम है या है कोई बद्दुआओं का सितम हर मोड़ पे दिखती अब कोई नयी दुविधा।। ग़ज़ल लिखूं तो उसे समझाये कौन? शायरी लिखूं तो उसे बताये कौन? कभी लिख देता हूं एक छोटी सी कविता, मगर दिख जाती […]