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ये सावन

-बीएस गौनिया ये सावन तुम्हारे हमारे लिए हैं ? या यूँ ही वहम इसे मैं समझ लूँ… बोलो… बारिस की छुवन लगे तन-मन अगन जो तुम ही नहीं तो ये कैसी लगन… बोलो… ये सावन तुम्हारे… ये कारी घटा लागे अद्भुत छटा मन क्यों मयूरा नाचे पंख हटा… बोलो… ये सावन तुम्हारे… ये प्यासा सावन […]

कबूल करो

परवाज़ नहीं, आवाज़ नहीं न साज़ यहाँ.. जाग मछँदर गोरख आया, तबला तब भी बोला था महफ़िल सूनी, जोगी बोला, भूमण्डल तब डोला था.. कबूल करो.. राजघराने छूट गये, न राजघमण्ड छूट रहा काल-खंड कई बीत गए, न राजधरम कुछ याद रहा.. कबूल करो… नाद-ब्रह्म सब छूट गए, धर्म पिपासा कहीं नहीं वो बैभव सारे […]