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गौरैया

-डॉ. आभा सिंह भैसोड़ा, हल्द्वानी, नैनीताल ओ गौरैया! सोन चिरैया, क्यों अब तुम ना दिखती हो? मेरे घर की रौनक थी तुम, क्यों देहरी पार ना करती हो? शुभ संकेत, जो साथ तुम्हारे, आने से रह जाते हैं। मुनिया गौरैया कब आयेगी? सूने घर दीवार भी पूछते हैं! कीट नाशक और टावर आतंक, हमारी राह […]

मां!

-डॉ.आभा सिंह भैसोड़ा, हल्द्वानी मां तो मां ही होती है , वो जवान,ना बूढ़ी होती है । पर्याय,खूबसूरती का करती वहन, होती अहसास का वो आह्वाहन। मां के माथे की हर लकीर , होती उसके श्रम की ही तस्वीर। इन लकीरों की कोशिश ही तो, बनाती है हमारी तकदीर । मां का हर भाव और […]

तुम मेरे लिए महान थे

मुझको जीवन देने वाले तुम मेरे लिए महान थे खुद तपती धूप में चलते थे करते पथ मेरा आसान थे मुझे बालिका होने पर भी शिक्षा ऊंची दिलाने वाले हे पिता मेरे तुम भगवान थे पिता ही तो बच्चों का आसमान खुला सा होता है उसका हाथ रहे सिर पर तो राह आसान सा होता […]