
-आकांक्षा आर्या, चिल्ड्रंस एकेडमी सीनियर सेकेंडरी स्कूल, हल्दूचौड़
सुहावनी सुबह, शीतल हवा,
महसूस की जाने कितने दिनों बाद..
ख़यालो की उलझनों से निकलकर, उस शाख की आई याद..
खिड़की से देखी, झूमती हुई वह मदमस्त शाख,
पत्तियों से लदी, लहराती हुई पवन के वेग के साथ..
उमंग से भर गया मन,
आज देखा कई दिनों बाद उपवन..
यह खुशी थी कुछ ही समय तक,
हुई भयानक तूफान की दस्तक..
नजरें घुमा कर देखी वह शाख,
रह गया उसमें सिर्फ आखिरी पात..
तूफानों से लड़कर डटा रहा,
मुस्कुरा कर वह देख रहा,
उसके अंत के बाद भी होगा एक नया सवेरा,
फिर पत्तियों से सजेगा यह उपवन मेरा..
इसी आशा और नए नजरिए के साथ, जिंदगी की उम्मीदें दे गया, शाख का वह आख़िरी पात…………