-ज्योति मेहता
संसार की नीव होती है बेटी।
घर की दहलीज होती है बेटी।
मां की अनुपस्थिति में घर चलाती है बेटी।
शाम को हाथ में चाय थमाती है बेटी।
दुख में भी मुस्कुराती है बेटी।
बातो को साझा करती है बेटी।
मां बाप का दुख बाटती है बेटी।
बेटा बाहर कहीं जन्मदिन मनाएगा?
घर में रोटी बनाती है बेटी।
मां बाप के साथ बैठती है बेटी।
कुछ कर पाएं दुआ करती है बेटी।
रिश्तों की उलझनों में गुम हो जाती है बेटी।
नाजुक कंधों मे जिम्मेदारी उठाती है बेटी
मां बाप का सहारा बनने की कोशिश करती है बेटी
फिर भी फिटकारी जाती है बेटी।
बहुत समय बाद सहलाई जाती है बेटी।
कठनाई को पार कर जाती है बेटी
अपनो को प्यार देती है बेटी
तैराक बनते हैं बेटे , तैर जाती है बेटी।
खट्टा मीठा स्वभाव रखती है बेटी।
भाग्य से नही सौभाग्य से मिलती हैं बेटी।