-प्रेमलता, चौखुटिया, अल्मोड़ा
ऐ प्रकृति तू
ऐ प्रकृति तू इतनी अद्भुत
कैसे हो गई है?
ना कोई जादू ना कोई
चमत्कार
फिर ऋतुओं में परिवर्तन कैसे लाती है?
ऐ प्रकृति तू…
कभी जाड़े से तेरे तपन बिन
देह का लहू भी जम जाता!
तो कभी तेरी हवा व छांव बिन
जीवन तक थम जाता है!
ऐ प्रकृति तू….
कभी तेरे बादल न जाने कहां गुम हो जाते हैं? और धरा को प्यासा कर
आकाल तक कर जाते हैं
और कभी वही बादल
खूब झमाझम वर्षा कर
ये नदी नाले पोखरों को
लबालब भर कर जाते!
ऐ प्रकृति…
कभी चहूं और हरियाली की चादर ओढ़
तेरी राहों को भी रंगीन कर जाती है
तो कभी तेरे पतझड़ के ठूंठ पेड़
बड़े उदास से लगते हैं
ऐ प्रकृति तू…
कभी तेरी नन्ही नन्ही कलियां
और खिलते महकते फूल
मन को खूब भाते हैं
तो कभी तेरे सूखते गिरते पेड़
मन को कचोट जाते हैं
ऐ प्रकृति तू….
कभी यह खेत खलिहान
लहर लहराकर
अपनी आगोश में ले लेते हैं
कभी तेरी माटी की सौंधी सुगंध
धूल बन ब्रह्मांड में फैल जाती है
ऐ प्रकृति तू….!
इतनी अद्भुत कैसे हो गई है
September 19, 2020
अत्यंत सुंदर कविता प्रकृति का वास्तविक चित्रण।