-अंजलि, भवाली
याद बहुत आता है पापा का,
मुझे गोद में उठाना।
पापा का वो उंगूली पकड़कर
मुझे चलना सिखाना।
मेरे गिरने से भी उन्हे दर्द,
होता हैं पर ये ना जताना।
शाम को मेरे लिए वो खट्टी,
टोफीया लाना।
याद बहुत आता है पापा का,
मुझे गोद में उठाना।
पापा का वो थक के आना,
और गोद में उठा के मुझे
घूमाना।
याद बहुत आता है पापा का,
रोज़ लोरी गाना।
और थपकी देकर मुझे,
सुलाना।
जिसमें था निदिया का आना जाना।
याद बहुत आता है पापा का,
लोरी सुनाना,
अपने गोद में सुलाना।
और चन्दा मामा दूर के गुनगुनाना।
याद बहुत आता है पापा का,
मुझे गोद में उठाना।
उनकी डांठ में भी प्यार का,
होना।
बिना बताये ही सब जान
लेना
मेरी हर जिद को मान लेना।
याद बहुत आता है पापा का
वो प्यार जताना।
गोदी में उठा के मुझे घूमना।
बेटी के लिए पापा का वो सुपर,
हीरो होना।
सारी दोस्तो की सिकायत
पापा से बोल देना।
याद बहुत आता है।
मेरी बातोंको पापा का वो दिल
से सुनना।
सारी शरारते मेरी और डाठ बड़े,
भाई को खिलाना।
पापा का वो दिल से बोलना,
मेरी लाडो से कोई कुछ ना
बोलना।
याद बहुत आता है ।
पापा का वो सब जानते हुए भी,
मुझे अपने सीने से लगाना।
याद बहुत आता है पापा का,
वो लोरी सुनाना