-हर्षित जोशी, हल्द्वानी
पहले हंसा करता था मैं , अब जिंदगी हंस रही है मुझे पर ,
चांदनी रात में चांद को ,
चंदा मामा कहता था मैं ,
जब मालूम हुआ मुझे ,
जिस चांद को चंदा मामा कहता हु मै ,
ना आएगा वो मुझसे मिलने वो,
न लायेगा खिलौने मेरे लिए ,
ना उठा कर कंधो में मुझे दिखायेगा मेले वो ,
हाय फूट-फूट कर रोया मै,
रोते रोते ही मां के आंचल में सोया मैं ।
पहले हंसा करता था मैं , अब जिंदगी हंस रही है मुझे पर ,
पहले घूम घूम गलियों में खूब तमाशे किया करता था ,
उछलता कूदता गलियों में खूब खेला करता था ,
जब लौटू घर तो ,
मां अपने सीने से लगा प्यार करती थी मुझे ,
पिता जी पुचकार कर अपने हाथो से खाना खिलाते मुझे ,
जिम्मेदारियों ने घेरा जिंदगी को ,
तमाशे सी लगने लगी ये जिंदगी
जिन गलियों में खेला करता था मैं ,
वो उड़ानें लगी मजाक मेरा ,
जिम्मेदारियों ने खेला खेल मुझ संग ,
बन गई मेरी जिंदगी एक नुक्कड नाटक ,
दर्शक बन ये जहां चुभो रहा शब्द भेदी बाण,
लहूलुहान कर मेरा मन,
खिल गया मानो हो कोई खिलता गुलाब
थक हार लौटा घर आया मैं ,
ना आई मां प्यार से सीने से लगाने को ,
ना पिताजी ने खिलाया पुचकारकर ,
ये देख दिल मेरा रोया आंखे बन गई जल का सैलाब,
जीने की तम्मना खतम हो चली,
मुस्कान भी मेरी हवा बन उड़ चली ।
पहले हंसा करता था मैं , अब जिंदगी हंस रही है मुझे पर ,
कंधो में हाथ डाल उछलते कूदते हम चार यार,
आया करते थे स्कूल से खेला करते थे संग ,
दिल से मैं प्यार करता था मैं उन्हें
सबसे सच्चा समझता था मैं उन्हे
जब जिंदगी खेल रही थी मुझ संग,
तो बदल गए उनके तेवर ,
शब्दो से किया उन्होंने सीने पर वार ,
कर गए वो दिल के टुकड़े हजार
ना मां बाप थे साथ न यार थे पास ,
अपने ही सर्प बन डस रहे थे मुझे आज ।
पहले हंसा करता था मैं , अब जिंदगी हंस रही है मुझे पर ,
बदल उड़ा ले गए बचपन ,
जिम्मेदारिया ले गई जवानी को ,
अब तो बस मौत की है बारी ,
ना जिम्मेदारियां घेरेंगी जिंदगी को ,
ना चुभोएगा दिल पर कोई शब्दभेदी बाण
चिता पर रख मेरी लाश अपने ही जलाएंगे मुझे आज ,
जल कर खाक बन जाऊंगा मैं ,
जिंदगी की हर कश्म कश से दूर हो जाऊंगा मैं ,
अकेला ही आया था अकेला ही जाऊंगा मैं ,
अपनो की आखों को नाम कर ,
इस जहां से हो विदा हो जाऊंगा मैं ,
फिर न लौट कर आऊंगा मैं …. फिर न लौट कर आऊंगा मैं ।।
September 27, 2022
Right choice of words and good concept. Loved it