मुखिया जी के चौपाल का खबरी है पटवारी लाल । वह प्रतिदिन चौपाल के लोगों को नया नया खबर लाकर सुनाता है । देश दुनिया की तमाम खबरें वह रखता है । किसी खबर को वह अपने पेट में पचाता नहीं है । भोपू मीडिया की तरह उसनेअपने कैरेक्टर को नहीं बना रखा है । वह सरकारी भोपू की तरह भी नहीं है । सच को छुपा लो और झूठ की प्रोपेगेंडा करते चलो यह बात पटवारी को पसंद नहीं है ।
मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ हैl लोकतंत्र को मजबूत रखने का दायित्व मीडिया के कंधे पर हैl अगर ऐसी हालत में मीडिया अपने कर्तव्य से विमुख हो जाए तो लोकतंत्र का भट्ठा बैठ जाना निश्चित हैl सच और झूठ के विभाजन रेखा की बीच का फर्क जनाना मीडिया का काम हैl लोकतंत्र के लिए क्या जरूरी है l लोगों को यह सब अवगत कराना चाहिएl और वह सब कुछ करना चाहिए ।
सच पर झूठ हावी ना हो जाए इस बात का ख्याल रखना मीडिया का काम होता हैl यही लोकतंत्र के लिए अहम बात हैl लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बहती नजर आती हैl
पटवारी की खबर पर चौपाल के लोगों का विश्वास इसलिए जमता है कि वह झूठ और सांच के फर्क कर समाचार से लोगों को अवगत कराता हैl पटवारी आज चौपाल में कूदते- फनते, हाफते दौड़ कर मुखिया जी के सामने हाजिर हैl मुखिया जी ने पूछा- पटवारी बड़ा खुश हो”? कोई नया समाचार लेकर आए हो! “ह, बहुत ही मजेदार समाचार लाया हूंl” लोकतंत्र की जीत का खबर है तथा एक रुपए के सिक्के का प्रतिष्ठा का सवाल हैl यह खबर चटकार खबर से कम है क्या?
देश के प्रतिष्ठित ख्याति प्राप्त वकील प्रशांत भूषण के फैसले का निर्णय सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया हैl लोकतंत्र के पक्ष में है आवाज उठाने वाले निर्भीक प्रशांत भूषण ने आज से 9 साल पहले एक टिप्पणी की थीl किसी ने उस गड़े मुर्दे को उखाड़ कर सुप्रीम कोर्ट के सामने रख दियाl सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर सुनवाई शुरू कर दीl सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे फाइल में दवे पड़े हैंl लेकिन यह मुद्दा महत्वपूर्ण बन गयाl सुनवाई हुई और प्रशांत भूषण को दोषी करार कर दिया गयाl इस निर्णय को लेकर देशभर में लोकतंत्र प्रेमियों ने हंगामा खड़ा कर दीl सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज देश के वकीलों ने देश के बुद्धिजीवियों ने एक प्रश्न खड़ा कर दियाl प्रशांत भूषण का कथन ऐसा नहीं है कि उन्हें सजा दी जानी चाहिएl सुप्रीम कोर्ट तो आखिर सुप्रीम कोर्ट हैl जब सजा सुनाई दिया है तो सजा देना निश्चित हैl प्रशांत भूषण को आखिर कर सजा सुना दी गईl एकरुपये का जुर्माना l
प्रशांत भूषण एक रुपया जुर्माना भरे अथवा तीन महीना जेल की सजा कांटे 3 साल तक वकालत करने से वंचित रहे l ऐसी सजा क्यों? वह इसलिए कि कोई लोकतंत्र मेप्राप्त अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठाएंl प्रश्न पूछना, प्रश्न खड़ा करना आमजन की मौलिक अधिकार हैl इस अधिकार को संविधान ने दिया हैl बार-बार सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रशांत माफी मांग लेl वे माफी के लिए राजी नहीं होतेl उनका कहना था दोषी है तो सजा दो हम किसी भी सजा को भुगतने के लिए तैयार हैl
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हम कुछ कह नहीं सकतेl मुंह खोल नहीं सकतेl मुंह खोलना भी नहीं चाहिएl सुप्रीम कोर्ट संविधान का रक्षक हैl सुप्रीम कोर्ट पर सभीका विश्वास टिका हैl वह विश्वास खुद सुप्रीम कोर्ट हिला दे तो अलग बात हैl पटरी से उतरते लोकतंत्र को पुनः पटरी पर लाने का काम तो सुप्रीम कोर्ट को ही करना हैl सुप्रीम कोर्ट को मालूम था हमने जो निर्णय दिया है प्रशांत भूषण के जज्बे के खिलाफ हैl इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट को प्रशांत भूषण से हर हालत में मनवा ना ही थाl शो ऐसा निर्णय कर दिया गयाl सबसे अहम बात है की प्रशांत भूषण की प्रैक्टिस 3 साल के लिए रोक दिया जाना साधारण बात नहीं हैl प्रशांत झक मार कर एकरूपये का जुर्माना भरेंगे..! सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय चाहे जैसा भी हो ऊसनेएकरूपये के महत्व को लोगों के समक्ष है लाकर रख दिया है? सुप्रीम कोर्ट कायह ऐतिहासिक फैसला कहा जाएगाl फैसला देने का जजों का नजरिया जो भी हो लोकतंत्र की आवाज को इसने एक दिशा प्रधान तो कर दिया हैl
-अरविंद विद्रोही, जमशेदपुर, झारखंड