October 10, 2022 0Comment

नारी की परिभाषा

-डॉ. अंकिता चांदना शर्मा, हल्द्वानी

सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, काली भी बन जाती है
मनमोहिनी, चंचला, ममता की सरिता ये बहाती है।
तोड़ के जब सारे बंधन, पंख ये फैलाती है।
आसमान की ऊंची बुलंदियों को ये छू जाती है।

इसकी वाणी में है कतार, जिसका कोई तोड़ नहीं
नारी की शक्ति को ना ललकारो, इस पर कोई जोर नहीं
गूंज उठी है वसुंधरा, नारी के गुणगान से,
महिमा इसकी दोहराते वेद पुराण महान से
मदर टेरेसा, लक्ष्मीबाई झांसी की रानी ये कहलाई
इतिहास के पन्नों पर, सुनहरी कलम से
अपनी अलग पहचान बनाई।

रूढ़िवादी जंजीरों से जब-जब बांधे पैर इसके
गर्व से खड़ी रही ये, बिना रूके आगे बढ़ती रही ये
दुनिया के डर से, डर जाए, यह नहीं वो बेचारी है
हालात से जो हार माने, यह नहीं वो लाचारी है।
लाख बिछा दो बंदिशें, फिर भी तोड़ के आगे बढ़ेगी
मात-पिता और देश का गर्व से मस्तक ऊंचा करेगी।

 

Social Share

gtripathi

Write a Reply or Comment