-डॉ. शबाना अंसारी
विरह में प्रियतम के
संसार ही सुनसान है
घुट घुट के जी रही
विष ये भी पी रही
तुम बिन मेरे प्रियतम
मृत्यु को मैं जी रही
सात वचनो में बंधी
देह को तेरी किया
धूल चरनो की तेरी
मांग में अपनी भरा
इससे जियादा किया करूं
ये वचन कम तो नहीं
प्रेम मैंने जो किया
प्रियतम के संग चली
हर कठिन समय को मैंने
प्रियतम तेरे लिए सहा
इस बात को है जानते भालिभाति प्रियतम मेरे
फिर क्यों सिया राम से इस बात को बोले भला
काया तेरी मेरी
प्रियतम एक है
जो साहा तूने
वही मैंने भी साहा
इस बात का प्रमाण है
14 बरस वनवास है
फिर भला कैसे
सिया से है राम जुदा
जनकपुर की लाडली
अवध की में बहू थी
फिर इस धर्म संकट को भोगा
दोनो ने साथ साथ था
आज भी में वैसी हु
बिलकुल सीता जैसी हूं
दुनिया ना जाने कैसी है
करती है चीरहरण मेरा
दहेज रेप एसिड अटैक के नाम पर
सा प्रेम बोल देते
तियाग में देती सब
आपकी प्रतिष्ठा मेरे लिए
पहले रही हमेशा के लिए
ये किया क्या प्रियतम मेरे
छोड़ के तुम चल दिए
इतने विवश तो ना थे
युहि प्रेम को तियाग दे
इतनी ही पीर थी क्या
प्रियतम तेरे मेरे बीच में