-डॉ. भगवती पनेरू, हल्द्वानी, नैनीताल
कुछ तो सोचो !!
कुछ तो समझो !!
मनु की ऐ संततियो!!
अब तो ——- ????
मानव – मन की आंखें खोलो !!
ये ऋषियों, मुनियों की धरती
मत खिलवाड़ करो इनसे तुम!
ये देवों की तपोभूमि है,
मत पिकनिक स्पॉट बनाओ !
मत काटो प्रहरी पर्वतों को,
मत यहां शहरी रिसोर्ट बनाओ !
बहुमंजिले मत होटल बनाओ !
आना हो तो हाथ जोड़कर आओ,
फूल- पाती, दीया -धूप जलाओ!
फल व बताशे भोग लगाओ !
सद्भावना से भेंट चढ़ाओ !
कल केदार !!
आज जोशीमठ!!
अब भविष्य का भान पा जाओ !!!
” जो मिलता है, वह प्रसाद है ”
यही भाव ले दर्शन करने आओ।
क्षणिक कष्ट यदि पा जाओगे,
दर्शन देवों के पाओगे!!
आने वाली संततियों को ,
जीवन तभी तुम दे पाओगे।।
अब “विकास – विकास” कहकर तुम,
मत विनाश के द्वार को खोलो ।
ये देवों की तपोभूमि है।
ये ऋषि- मुनियों की धरती है।
मत खिलवाड़ करो तुम इनसे,
मत विनाश के द्वार को खोलो।।
मत विनाश के द्वार को खोलो।।