-शैलेंद्र भाटिया, दिल्ली
छोटा अ से शुरू होकर ज्ञ तक सिमटी हुई हूँ मैं
देवनागरी की बुनियाद पर खड़ी मैं सभी की ज़ुबान हूं
जहां मुझे सूर ,तुलसी, कबीर ने सींचा है
तो वही महादेवी ,पंत ,निराला ने निखारा है
प्रेमचंद के गोबर व होरी की वाणी हूं
तो अज्ञेय व मुक्तिबोध की नई कविता हूं मैं
खेत, खलियान, मेड़ में समाई हिंदी हूँ
मैं बालीवुड हूं
चुनाव व सरकार का नारा हूं
सितंबर का पखवारा हूँ
पुरस्कार हूं
निबंध हूं
गोष्टी हूं
प्रोत्साहन हूं
स्लोगन हूं
विश्व के हर कोने में फैली हिंदी हूँ
मैं हिंदुस्तान की हिंदी हूँ
मैं हिंदी हूँ
संयुक्त राष्ट्र में देश की मान हूं
मुझे बोलने व लिखने पर लोगों को पुरस्कार मिलते हैं
मैं प्रशस्ति हूं
मैं देश को जोड़ने वाली भाषा हूं
गैर हिंदी के बीच हिंदी हूं
विरोध व आंदोलन का कारण हूँ
मैं हिंदी हूं
मुझे बोलकर देख लीजिए
मुझे सुन लीजिए
मुझे लिख कर देख लीजिए
मैं सहज हूं
सरल हूं
ग्राह्य हूं
आप और आम जन की आवाज हूँ
मैं हिंदी हूं
अपनाकर के देख लीजिए
सबको एक धागे में पिरोने वाली माला हूं
मैं 14 सितंबर का दिवस हूं
मैं हिंदी हूँ