October 12, 2020 0Comment

मैं हूँ एक लड़की

-नीरज मिश्रा, देवल चमोली

मैं हूँ एक लड़की

मैं भी एक इंसान …..

मुझे जीने का अधिकार दो,

ना आधा ना कम

मुझे पुत्र के समान प्यार दो,

घर का चूल्हा नहीं, ना ही झाड़ू लगाना,

मुझे भी पढने का अधिकार दो,

मैं हूँ एक लड़की मैं भी एक इन्सान,

मुझे जीने का अधिकार दो,

मैं कोई सतयुग की ‘सीता’ नहीं,

जिसे शक के कारण राम ने त्याग दिया था,

ना ही कालिदास की ‘विद्योत्मा’ हूँ,

ना ही मैं दुष्यंत की ‘शकुन्तला’ हूँ,

जिसे वे भूल जाये,

मुझे कल्पना चावला बनकर नीले गगन को छूने दो,

मुझे पी. टी. ऊषा बनकर देश का गौरव बनने दो,

मुझे इन्दिरा गांधी बनकर देश को चलाना है,

एक सफलता भरी कहानी को लाना है,

केवल भोग – विलास का साधन नहीं हूँ मैं,

ना ही मैं द्वापर की ‘द्रौपदी’ हूँ,

जिस देवी दुर्गा, लक्ष्मी को पूजते हो, उसी का करते हो अपमान,

लड़की को लक्ष्मी कहते हो,

तो फिर क्यों लक्ष्मी को भोज समझते हो,

नहीं बढ़ेंगे पुरुषों से आगे,

केवल साथ चलने का तो अधिकार दो,

मैं हूँ एक लड़की

मैं भी एक इंसान …..

मुझे जीने का अधिकार दो,

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gtripathi

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