-डॉ.आभा सिंह भैसोड़ा, हल्द्वानी
मां तो मां ही होती है ,
वो जवान,ना बूढ़ी होती है ।
पर्याय,खूबसूरती का करती वहन,
होती अहसास का वो आह्वाहन।
मां के माथे की हर लकीर ,
होती उसके श्रम की ही तस्वीर।
इन लकीरों की कोशिश ही तो,
बनाती है हमारी तकदीर ।
मां का हर भाव और अभाव ,
बनाता है उसका मृदु ल स्वभाव।
खुद को करती सुविधा वंचित ,
परिवार हेतु करती है संचित।
ये बल किया कहां से मां! अर्जित?
समस्त कुटुंब किया एकत्रित।
भूख की चिंता करती ना किंचित,
प्यास को भी कर लेती है निश्चित ।
निश्छल सौम्य रूप का दीदार,
करूं मां मैं हर पल बारंबार।
हर सांस , आस , निश्वास में बसती, प्रत्यक्ष से परे , हर पल संग रहती।
मां!……. मेरी मां!
January 10, 2023
बहुत सुंदर।
January 12, 2023
Wonderful
January 17, 2023
Excellent as always..It is a flow of emotions and warmth ,roped in words..Abha…it’s so sweet