October 11, 2017 5Comments

क्यों तुम मुझको गुड़िया कहते थे पापा

क्यों तुम मुझको गुड़िया कहते थे पापा,
लोगों ने तो मुझे खिलौना बना दिया।
भावशून्य निर्जीव वस्तु के जैसा ही,
चलता फिरता एक नमूना बना दिया।।

अपनी बिटिया रानी को खुद तुमने ही,
घर से दूर यहाँ गैरों में रहने को।
छोड़ दिया असहाय अकेली इन सबकी,
तीखी नज़रे, कड़वी बातें सहने को।।

मैं सबकी खुशियों की खातिर ही अपनी,
हर चाहत का गला घोंटती रहती हूँ।
इसके,उसके ,सबके सपने सच हों बस,
सोते,जगते यही सोचती रहती हूँ ।।

औरों के होठों पर हंसी खिलाने को,
अपना दुख अंतर में सदा दबाया है।
भले मिली दुत्कार मुझे लेकिन मैंने,
आँचल की छाया में उन्हें सुलाया है।।

भूल गए सब मैं भी एक मानवी हूँ,
हाड़- माँस से बनी देह मेरी भी है।
मैं भी सुख दुख अनुभव करने वाली हूँ,
कुछ सपने, कुछ इच्छाएं मेरी भी हैं।।

कहने को तो बनी मालकिन मैं घर की,
है अधिकार नहीं मेरा इक कोने पर।
पूरी होती रहे जरूरत हर सबकी,
नहीं फ़िकर मेरे होने, ना होने पर।।

मेरी दुख तकलीफों की है किसे फ़िकर,
सब अपनी दुनियां में खोए रहते हैं।
मेरी आँखों मे चिंता है नींद नहीं,
वो सुख की निद्रा में सोये रहते हैं।।

पत्नी, भाभी, बहू और माँ बनकर जो,
सुख पाया वो बयां किया जाए ना अब।
मैं खुश थी बस बहन और बेटी बनकर,
रिश्तों का ये भार सहा जाए ना अब।।

क्यों कुदरत ने नियम अनोखे बना दिये,
जिस घर जन्मी वही पराया कहलाया।
“अपने घर जाओ” ये कहकर विदा किया,
लेकिन इस घर ने भी कभी न अपनाया।।

– क्षमा गौतम, शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश

 
 
 
 
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gtripathi

5 comments

  1. बहुत सुंदर

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  2. Your poem is very attractive and heart touching which is created by splended words to shows parents love to our children.

    by mr madan dev and mrs anju dev

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  3. Comment *So nice poem bhabhiji. I am very cheerful readig it. How glad I will be if I get a beautiful chance to listen it from you !

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  4. एक अच्छी अभिव्यक्ति कविता के माध्यम से,शुभकामनाएं

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  5. Bahut hi sunder rachna

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